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Saturday 10 April 2021

स्त्री की दुविधा

जब कभी मैं किसी के भी माता पिता की बीमारी के
बारे में सुनती हूं और जब ससुराल वाले कहते हैं 
क्या करोगी मायके जाकर जब देखो बीमार हो जाते हैं ?
सब केवल नौटंकी करते हैं नहीं जाना है वहां
मन इतना व्यथित हो जाता हैं कुछ समझ में नहीं आता
बगावत करने को दिल करता है सब कुछ छोड़ने को
हम स्त्रियाँ इतना सहती ही क्यों हैं ?
क्या हमारे माता पिता कुछ नहीं है उनके लिए 
उनके माता पिता को जरा सी छींक भी आ जाए तो 
घर सिर पे उठा लेते हैं हम तो भेदभाव नहीं करतेे
उनकी मां को अपनी मां से बढ़कर सेवा करते हैं 
उनके पिता को अपने पिता से ज्यादा मान देते हैं 
फिर वो क्यों नहीं ऐसा करते ?
उनके भाई बहन उनके लिए दुधमुहे बच्चे हैं तो
क्या हमारे भाई बहन कुछ भी नहीं है
उनकी बहनें आती है तो बिस्तर पर ही सब कुछ चाहिए
हमारी बहनें आए तो घर के हर काम में साथ लगी रहती हैं
हम सब कुछ तो करते है उनकी बहनो के लिए
अपनी बहन क्या अपने बच्चों की तरह दुलार करते है
उनके भाई को अपना बेटा मान कर दुलार करते है
पर हमारे भाई बहन को देख कर सब मुंह बना लेते हैं
हम इतनी बेबस क्यों हो जाती हैं ?
बस रिश्ते को बचाने के लिए हम न जाने कितने
अपमान, दुःख, गालियां,मार तक सह जाती हैं
शकुंतला
सर्वाधिकार सुरक्षित
अयोध्या (फैज़ाबाद)

Friday 9 April 2021

मेरा कमरा जानता है

मेरा कमरा जानता है......
मैं कितनी भी लापरवाह रहूं पर
हर चीज को करीने से ही रखूंगी
कमरे का कोना कोना 
बड़े ही प्यार से सजाऊंगी
मेरा कमरा जानता है.....
कि मैंने न जाने कितनी सारी 
यादों को संजो के रखा है
न जाने कितनी बातें सांझा की है
मेरा कमरा जानता है..…
मेरे बचपन की कितनी खट्टी मीठी बातें
न जाने कितनी रातें मां के प्यार
दुलार,लोरियों के बिना काटी है
मेरा कमरा जानता है कि
मैं कितना रोई थी मां के जाने के बाद
मेरा तकिया भी मेरे साथ रोता है हर पल
हर तरफ बस मां की यादें हैं
मेरा कमरा जानता है .....
वो दादाजी और दादीजी की प्यार भरी बातें 
मेरी हर ज़िद को पूरा करना 
मां मारती तो दादी डांटती दादा दुलार करते
मेरा कमरा जानता है .......
हम भाई बहनो का आपस का जुड़ाव
वो लड़ना झगड़ना फिर एक हो जाना
एकदूसरे की गलतियों को छुपा लेना
मेरा कमरा ही जानता है..…
कितने अकेले हो गए हैं हम और हमारा कमरा
बस जुड़ी है सारी बातें , यादें ,वादे ,कसमें, झगड़े ,लोरिया,त्योहार, पागलपन सब कुछ 
मेरा कमरा ही जानता है ...…
शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)

पुराने दोस्त वापस लौट आते

अगर पुराने दोस्त वापस लौट आते तो
फिर से मैं उन सुनहरे पलों को जी लेती
बचपन की वो मासूमियत फिर से आ जाती
रंगबिरंगी तितलियों को फिर से हम पकड़ते
बारिश के पानी को छत पर रोककर फिर से नहाते
एक दूसरे के टिफिन से खाना चुराते और 
फिर उसे इंटरवल में कैंटीन से समोसा खिलाते
एक ही टॉफी में सब मिल बांट कर खा लेते
नीचे कुछ भी गिर जाता धरती मां से पूछ के उठा लेते 
कब्बड़ी का मैच और भी मजे से खेलते 
जीतने पर खूब खुशी मानते हल्ला करते
टेस्ट में जब एक दूसरे से नंबर ज्यादा आते तो जलन के साथ खुशी भी मानते
क्लास टीचर की फेवरेट स्टूडेंट की होड़ में एक दूसरे से अच्छा करने की कोशिश करते
जब भी मौका मिलता अंताक्षरी में सबको हरा देते
एक्जाम में एक दूसरे की डरते डरते मदद भी करते 
गेम्स पीरियड में फिर से बॉलीबॉल खेलते हुल्लड़ मचाते
एजुकेशनल टूर में और भी मस्ती करते एक दूसरे की प्रॉब्लम्स सॉल्व करते 
न जाने कौन कौन सी खुशियों को ख्वाहिशों को
अपने यादों के पिटारे में भर लेते
काश ऐसा हो जाता जो न कर पाए वो पूरा कर लेते
शकुंतला
सर्वाधिकार सुरक्षित
अयोध्या (फैज़ाबाद)

Thursday 8 April 2021

मैं स्त्री हूं

सब जानते हैं पहचानते भी है पर
मुझे मेरे नाम से क्यूं नही
जन्म लिया स्त्री के रूप में पर 
मेरी कोई पहचान क्यों नहीं
कोई कहता देखो फलनवा की बेटी हैं
सुनकर गौरांवित तो होती हूं पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की बहन हैं
सुन कर दिल गदगद हो जाता है पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की पत्नी हैं
सुन कर मन नाच उठता है पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की बहु हैं
सुनकर समाज की नजरों में सम्मान मिल तो जाता हैं पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की मां है
सुनकर अभिमान से भर उठती हूं पर इसमें मैं कहां हूं
पर जो मैं सुनना चाहती हूं उसे कोई क्यों नहीं कहता मै स्त्री हूं...
क्या मेरा कोई स्थान नहीं है क्या मेरा कोई आस्तित्व नही है
क्या हम स्त्रीयां हमेशा पुरुषों के नाम से ही जानी जायेंगी
नही... मैं स्त्री हूं शक्तिपुंज हूं यह अलख हमेंं जगानी होगी  
हर स्त्री को चिरनिद्रा से जागना होगा अपनी पहचान
बनानी होगी..… अपनी पहचान बनानी होगी
शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)

कहाँ खो गई हो तुम

कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...