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Saturday, 10 April 2021

स्त्री की दुविधा

जब कभी मैं किसी के भी माता पिता की बीमारी के
बारे में सुनती हूं और जब ससुराल वाले कहते हैं 
क्या करोगी मायके जाकर जब देखो बीमार हो जाते हैं ?
सब केवल नौटंकी करते हैं नहीं जाना है वहां
मन इतना व्यथित हो जाता हैं कुछ समझ में नहीं आता
बगावत करने को दिल करता है सब कुछ छोड़ने को
हम स्त्रियाँ इतना सहती ही क्यों हैं ?
क्या हमारे माता पिता कुछ नहीं है उनके लिए 
उनके माता पिता को जरा सी छींक भी आ जाए तो 
घर सिर पे उठा लेते हैं हम तो भेदभाव नहीं करतेे
उनकी मां को अपनी मां से बढ़कर सेवा करते हैं 
उनके पिता को अपने पिता से ज्यादा मान देते हैं 
फिर वो क्यों नहीं ऐसा करते ?
उनके भाई बहन उनके लिए दुधमुहे बच्चे हैं तो
क्या हमारे भाई बहन कुछ भी नहीं है
उनकी बहनें आती है तो बिस्तर पर ही सब कुछ चाहिए
हमारी बहनें आए तो घर के हर काम में साथ लगी रहती हैं
हम सब कुछ तो करते है उनकी बहनो के लिए
अपनी बहन क्या अपने बच्चों की तरह दुलार करते है
उनके भाई को अपना बेटा मान कर दुलार करते है
पर हमारे भाई बहन को देख कर सब मुंह बना लेते हैं
हम इतनी बेबस क्यों हो जाती हैं ?
बस रिश्ते को बचाने के लिए हम न जाने कितने
अपमान, दुःख, गालियां,मार तक सह जाती हैं
शकुंतला
सर्वाधिकार सुरक्षित
अयोध्या (फैज़ाबाद)

23 comments:

  1. रिश्तों के मध्य ही, हम खुद को भी महफ़ूज महसूस करते हैं।
    सुन्दर भाव....संयोजन

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    1. धन्यवाद आदरणीय 🌹

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  2. सहज , सरल , विचारणीय प्रस्तुति !

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    1. जी बहुत आभार आदरणीय

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  3. maa par dohe
    Mere Alfaz
    जीवन तपती धूप है तू शीतल सी धार
    थपकी लोरी में छुपा माँ का अनगढ़ प्यार।

    तुझ से ही सांसे मिलीं तुझ से जीवन गीत
    तुझ से ही रिश्ते जुड़े तू पावन सी प्रीति।

    तेरी लोरी में बसा सुर संगम आभास
    तेरे क़दमों में बिछा हम सबका आकाश।

    सारा दुःख तूने सहा बीने सारे शूल
    अपने बच्चों के लिए बिखराये तू फूल।

    मेरे सुख में तू सुखी दुःख में मेरे रोय
    काँटे चुन चुन राह के फूल रही तूं बोय।

    तेरे हाथों से बना भोजन है परसाद
    एक निवाला गर मिले जीवन हो आबाद।
    माँ तुलसी का रोपना माँ शीतल जल धार
    माँ से बढ़ कर कौन है इतना दे जो प्यार।

    माँ का रिश्ता हर जनम सब रिश्तों की शान
    बिन तेरे सब घर लगें सूने से श्मशान।

    माँ ममता की महक है माँ है सूर्य प्रकाश
    माँ हरियाली सी लगे माँ जीवन की आस।

    माँ के चरणों में बसे गीता और कुरान
    माँ की जो पूजन करे उसे मिलें भगवान।

    मैं अनगढ़ मूरत भला मुझे कहाँ है भान
    संस्कार माँ से मिले बना दिया विद्वान।

    माँ है सरिता नेह की त्याग समर्पण नाम
    माता के आशीष से बनते बिगड़े काम।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीय

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  4. माँ पर दोहे
    Sushil Sharma Sushil Sharma

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  5. सार्थक लेखन करती सुन्दर रचना।

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    1. धन्यवाद आदरणीय

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  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 12-04 -2021 ) को 'भरी महफ़िलों में भी तन्हाइयों का है साया' (चर्चा अंक 4034) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. जी बहुत आभार आदरणीय रवींद्र जी
      मैं आपके चर्चा मंच पर जरूर उपस्थित रहुंगी

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  7. A good informative post that you have shared and thankful your work for sharing the information. I appreciate your efforts. this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us. Please read mine as well. truth of life quotes

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  8. सार्थक सृजन।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया दी

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  9. दारूण गाथा!
    मर्म स्पर्शी ।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया

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  10. यथार्थपूर्ण,मार्मिक अभिव्यक्ति ।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया

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  11. Wow this is amazing content that you have shared with us. Thank you so much for sharing this valuable content.

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....