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Sunday 25 November 2018

रूहानी मोहब्बत-माँ

रूहानी मोहब्बत की दास्तां हैं माँ
हर इंसान की पहली मोहब्बत हैं माँ
धरा पर ईश्वर का प्रतिरूप हैं माँ
पूरे विश्व का एक ब्रह्माण्ड हैं माँ
आँखो से छलकता हुआ सागर हैं माँ
हर खुशी हर गम में बहता मीठा झरना है माँ
हम गुस्से में हो तो प्यार भरी जादू की झप्पी हैं माँ
जब वो नाराज़ हो सबसे तो प्यार भरी छपकी है माँ
माणिक्य प्रकाश सी घर आंगन का लरजता दीपक हैं माँ
परिवार के हर मनके को जोड़नेवाला धागा हैं माँ
सबकी बलाए नज़रे उतारनेवाला काला टीका हैं माँ
खुद को भूखा रख हर निवाला ख़िलानेवाली अन्नपूर्णा हैं माँ
तपती धूप में आँचल का साया हैं माँ
सूखे कण्ठ को तर करनेवाली ठंडाई हैं माँ
छाती का अमृत पिलानेवाली पवित्र गंगा हैं माँ
तीनों जहां में छाई हुई रूहानी मोहब्बत हैं माँ...
©®@शकुंतला
अयोध्या(फैज़ाबाद) न

कहाँ खो गई हो तुम

कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...