आज भी कहीं दहक रही हैं
मेरे अंतर्मन में
अलाव....
तेरे प्यार की
याद है मुझे
जब आप आये थे
संग अपनी बहन के
पहली बार देखने मुझे
जून की तपिश भरे
मौसम में
मैं डरती सकुचाई सी
लेकर हज़ारों ख्वाहिशें
मन में
आई जब रूबरू आपके और
जब आपकी नज़रों से टकराई
मेरी नज़रे
लगा जैसे मिल गया...
हमदम मेरा
पड़ गई जैसे जलते
अलाव ....
पर सावन की पहली फुहार और
सोंधी सोंधी महक से
महक उठा मेरा मन
फिर हुआ शुरू
सिलसिला बातों रस्मों का....
ऐसी लगन लगी
आपकी बातों के मोहपाश में
मैं बंधती चली गई
छोड़ के बाबुल का आँगन
बहनों का लाड़ दुलार
लेके संग तेरे
अलाव.....
के फ़ेरे जीने मरने की
कसमें खाई
आ गई सजना बन
जीवनसंगिनी द्वार आपके.....
सोचा था...
हंसी ठिठोली से होगी
शुरुआत नवजीवन की....
पर क्या मालूम था फिर
जलना होगा उसी
अलाव.......
में
शकुंतला
फैज़ाबाद
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Saturday 14 April 2018
अलाव तेरे प्यार की
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