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Tuesday 19 September 2017

औरत की जिंदगी

कितना बड़ा प्रश्न हैं औरत की जिंदगी,
मज़बूरियों का ज़श्न हैं औरत की जिंदगी।

ये ज़ुल्म बलात्कार तो चाँटे की तरह हैं,
जैसे सहलाया हुआ गाल हैं औरत की जिंदगी।

गॉंवों ने गर कुचला तो शहरों ने उछाला,
जैसे कोई फुटबॉल हैं औरत की जिंदगी।

खुशबुएँ बाँटी जिसने तमाम उम्र,
काँटो भरी वो डाल हैं औरत की जिंदगी।

चुनरी की जगह तो इसको कफ़न तो न दीजिए,
वैसे भी तंग हाल हैं औरत की जिंदगी।।

                                    ©®@ शकुंतला
                                    फैज़ाबाद

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