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Thursday 19 October 2017

दीपों का पर्व

पर्व है पुरूषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,

देहरी पर दीप हमेशा जलता रहे,
तिमिर से द्वंद्व यह चलता रहे

हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,

दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ हैं,
कायम रहे हमेशा इसका अर्थ, अन्यथा ये व्यर्थ है,

आशीर्वादों की अमिट छाँव शकुंतला को दीजिये,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।।
 ©®@शकुंतला
        फैज़ाबाद

Monday 16 October 2017

दीपावली

दीप जैसे आप जगमगाते रहे
जीवन का हर तिमिर मिटता रहे

हर दिन नई फसलों की तरह लहलहाता रहे
हर रात उत्सव की फुलझड़ियां खिलती रहे

अधरों से मीठी मुंन्हार फूटती रहे
आँचल भर भर खुशियां आती रहे

बस इतनी सी ख्वाहिश है शकुंतला की
वसुधा के हर घर में बनती रहे दीपावली
 ©®@शकुंतला
       फैज़ाबाद

कहाँ खो गई हो तुम

कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...