पर्व है पुरूषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप हमेशा जलता रहे,
तिमिर से द्वंद्व यह चलता रहे
हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ हैं,
कायम रहे हमेशा इसका अर्थ, अन्यथा ये व्यर्थ है,
आशीर्वादों की अमिट छाँव शकुंतला को दीजिये,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।।
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप हमेशा जलता रहे,
तिमिर से द्वंद्व यह चलता रहे
हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ हैं,
कायम रहे हमेशा इसका अर्थ, अन्यथा ये व्यर्थ है,
आशीर्वादों की अमिट छाँव शकुंतला को दीजिये,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।।
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद
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