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Thursday 19 October 2017

दीपों का पर्व

पर्व है पुरूषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,

देहरी पर दीप हमेशा जलता रहे,
तिमिर से द्वंद्व यह चलता रहे

हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,

दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ हैं,
कायम रहे हमेशा इसका अर्थ, अन्यथा ये व्यर्थ है,

आशीर्वादों की अमिट छाँव शकुंतला को दीजिये,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।।
 ©®@शकुंतला
        फैज़ाबाद

8 comments:

  1. हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
    जीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,
    ....वाह्ह बहुत खूब :) गोवर्घन पूजा की शुभ कामनाएँ !

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    1. बहुत बहुत आभार संजय जी

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  2. बहुत सुंदर लाज़वाब पंक्तियाँ शंकुतला जी।

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    1. शुक्रिया स्वेता जी....आप जैसे महान रचनाकार का प्रोत्साहन मेरे लिए आतूलनीय हैं🌻

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  3. आदरणीय शंकुतला जी-------- बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी आपने | दीपोत्सव की
    हार्दिक मंगल हर्दिक्मंगल कामनाएँ |

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  4. शुक्रिया वंदनीय रेणु बाला जी ....आपके अतुलनीय प्रोत्साहन से मन लेखिनी की ओर आकर्षित होता हैं

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  5. बेहद खूबसूरत कविता .

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  6. बहुत बहुत आभार मीना जी...आप के प्रोत्साहन से मन में उत्साह उत्पन्न होता हैं

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