दीप जैसे जले रोशनी के लिए
भाव जैसे मुखर जिंदगी के लिए
पी के स्वयं मैं अंधकार तुझे हमसफ़र
दे रही हूं दुआ उजाले के लिए
हर क़दम पर यहां लोग ही लोग हैं
खोज हैं जारी क्यों इंसान के लिए
फ़लक से प्यार में हकीक़त कहा
हर नज़र उठी सिर्फ चाँदनी के लिए
यह सिर्फ तुम्हरा हो गया है हृदय
जी रही हुँ पर मैं सभी के लिए
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद