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Tuesday 16 January 2018

हमसफ़र

काश अपना भी कोई हमसफ़र होता
और उस सफ़र का एक गुलिस्तां होता

गुलिस्तां में सजाएं होते अपने यादों के फूल
कहीं न कहीं तो बहार आई होती

क़दम से क़दम मिलाकर चलते
चाहे दुश्मन सारा ज़माना होता

रास्तों में साथ होता मंजिल तक पहुंच जाते
उस वक़्त ज़माना भी अपने कदमों में होता

हर नाज़ों सितम तेरे हमने उठाये होते
गर सीने से अपने कभी लगाया होता

यदि रुकना तेरा मुहाल था तो
हमने चलना अपनी तकदीर बनाया होता

ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर तुमने पुकारा होता
हमने भी अपनी किस्मत को सराहा होता
©®@शकुंतला
      फैज़ाबाद

24 comments:

  1. बहुत बहुत सुंदर रचनाशकुजी
    कहीं उदास मन की झलक और अपने की ललक लिये।

    कोई होता जिसको अपना हम अपना कह लेते।
    वाह पोस्ट।
    शुभ संध्या ।

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    1. शुक्रिया कुसुम दी

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  2. वाह खूब अपनेपन की चाहत लिये भटकते लफ्ज .....👌👌👌👌👌

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    1. शुक्रिया इंदिरा दी आपको मेरी कोशिश पसन्द आई

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  3. बहुत ख़ूब ...
    प्रेम की चाह में लिखे सुंदर शब्द जो मन के भाव को सहज बयान कर रहे हैं ...

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  4. कोमल भावों से भरी चाहतों ज़िक्र करती ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति।

    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया रविन्द्र जी

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  5. ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर तुमने पुकारा होता
    हमने भी अपनी किस्मत को सराहा होता--- क्या बात है !!!!! बहुत खूब प्रिय शकु === मन को छूती सुंदर रचना सस्नेह ---

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    1. रेणु जी बहुत आभार आपको पसंद आई हूं धन्य हुए

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  6. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'गुरुवार' १८ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in

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    1. शुक्रिया ध्रुव जी आपको मेरी रचना पसंद आई

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  7. बहुत खूब .....
    आकर्षित करते शब्द .....!!

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    1. शुक्रिया संजय जी

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  8. वाह ! बेहतरीन प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. शुक्रिया राजेश जी

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  9. समर्पण का संगीत!!!

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  10. बहुत सुन्दर.....

    चाहत और प्रेम की अभिव्यक्ति....
    वाह!!!!

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  11. शुक्रिया सुधा दी

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  12. शुक्रिया रितु जी

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  13. बहुत सुंदर अनुरोध खूबसूरत भावों से सजी रचना।

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    1. बहुत आभार पम्मी जी

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