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Friday 8 December 2017

नवनीत सी रात हो

दर्द रोने से दूर होता नही,शब्द इनको बना लो तो कुछ बात हो
पीर के मेघा पलकों में छाए मगर, अश्रु मोती के किंचित धरा पर गिरे

नेह के दीप को बुझने न दो,पथ में चाहें जितना अंधेरा घिरे
ऐसे मुस्काओ कि उपवन में कलिया खिले,ऐसे झुमों की मरुस्थल में बरसात हो

हर्ष हैं कष्ट से छाँव हैं धूप से,जिंदगी वस्तुतः इक संघर्ष है
यह कसौटी परम सत्य का साक्ष्य हैं, दाह स्पर्श में स्वर्ण उत्कर्ष हैं

जिंदगी एक शतरंजी बिसात हैं, ऐसे खेलो इसे मौत की मात हो
सबको आलोक दो अपने व्यक्तित्व का, सूर्य जैसे भले ताप से तुम जलो

लोक कल्याण बड़ा धर्म हैं, मान कर के यही लक्ष्य तुम चलो
ऐसे आवाज़ दो हर दिवस छन्द हो,ऐसे गाओ की नवनीत सी रात हो
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद

Thursday 7 December 2017

अपनी निशानी दे दो

गुनगुना कर मेरे आरजू को मानी दे दो
बन के किरदार मुझे कहानी दे दो

मेरी आँखों में सब्र का टुकड़ा भी नही
तू तो सावन है मेरी आँखों को पानी दे दो

हैं ज़मी बर्फ़ मेरे हाथों के दरियाओं से
हो सके तो उन्हें साँसों की रवानी दे दो

शर्तिया मैं तेरे ख्वाबों से चली जाऊँगी
मेरे होंठों को कोई अपनी निशानी दे दो
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद

Wednesday 6 December 2017

गहरा समुद्र लगता हैं

जाने अपने साये से क्यों आज मुझे डर लगता है,
जला हुआ शहर अपना घर लगता है ।

कुछ इतना चेहरा टूटा है, घाव कुछ इतने खाए हैं,
फूल भी उसके हाथों का पत्थर लगता है।

वैसे तो मेरा भी महबूब दुलारा है लेकिन,
उसकी हर एक बात से दिल में खंजर लगता है।

डूबी उभंरी डूबी हर लम्हा,हर पल,हर रोज
उसकी आंखों में एक गहरा समुंदर लगता है।
©®@शकुंतला
फैजाबाद

कहाँ खो गई हो तुम

कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...