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Wednesday 6 December 2017

गहरा समुद्र लगता हैं

जाने अपने साये से क्यों आज मुझे डर लगता है,
जला हुआ शहर अपना घर लगता है ।

कुछ इतना चेहरा टूटा है, घाव कुछ इतने खाए हैं,
फूल भी उसके हाथों का पत्थर लगता है।

वैसे तो मेरा भी महबूब दुलारा है लेकिन,
उसकी हर एक बात से दिल में खंजर लगता है।

डूबी उभंरी डूबी हर लम्हा,हर पल,हर रोज
उसकी आंखों में एक गहरा समुंदर लगता है।
©®@शकुंतला
फैजाबाद

8 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया नीतू जी

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  2. लाजवाब गजल! उसकी आंखों मे गहरा समुद्र लगता है
    बहुत खूबसूरती से बयान किया आपने।
    शुभ दिवस।

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    1. शुक्रिया कुसुम दी

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  3. बहुत ख़ूब ...
    अच्छे शेर हैं ...

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    1. शुक्रिया दिगम्बर जी

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  4. ....कमाल की प्रस्तुति

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