उस चांद से पूछो ?
तुम हर दिन घटते बढ़ते
क्यों रहते हो ?
कभी तो लगता हैं
हर दिन बढ़ रहा है प्यार तुम्हारा
फिर भ्रम टूटने लगता है
तुम्हारे हर दिन घटने से
कम होने लगता हैं प्यार तुम्हारा
क्यों प्यार तुम्हारा ऐसे
करवटे बदलता रहता है?
कभी तो पूरा दिखते हो
बरसाते हो असीम प्रेम मुझ पर
कभी तो एक दम हो जाते हो गायब
करके अंधकार जीवन मेरा.…..
शकुंतला अयोध्या (फैज़ाबाद)*