बिन तेरे ये रातें भी बढ़ी अजीब सी हो जाती हैं
तुम साथ होते हो तो रात बातों में गुजर जाती हैं
बिन तेरे ये रातें मुझे सोने ही नहीं देती हैं
तुम साथ होते हो तो तेरी बाहों के सिरहाना न जाने कब सुला देता हैं
बिन तेरे ये रातें मुझे चिढ़ाती हैं मुझे रूला जाती हैं
तुम साथ होते हो मेरे चेहरे की रौनक देख चांदनी भी शरमा जाती हैं
बिन तेरे ये रात रानी की महक भी बदबू सी लगती हैं
तुम साथ होते हो तो तेरे बदन की खुशबू रजनीगंधा सी हो जाती हैं
बिन तेरे ये रातें कांटों भरा बिचौना बन जाती हैं
तुम साथ होते हो तो फूलों की सेज बन जाती हैं
शकुंतला अयोध्या
(फैज़ाबाद)
प्रेम रस में भीगी सुन्दर कृति..
ReplyDeleteशुक्रिया जिज्ञासा जी
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteजी शुक्रिया आदरणीया
ReplyDeleteमैं जरूर उपस्थित रहुंगी
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी शुक्रिया आदरणीय ओंकार जी
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बधाई
🙏
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया
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