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Thursday, 11 February 2021

ये रातें

बिन तेरे ये रातें भी बढ़ी अजीब सी हो जाती हैं
तुम साथ होते हो तो रात बातों में गुजर जाती हैं 
बिन तेरे ये रातें मुझे सोने ही नहीं देती हैं
तुम साथ होते हो तो तेरी बाहों के सिरहाना न जाने कब सुला देता हैं
बिन तेरे ये रातें मुझे चिढ़ाती हैं मुझे रूला जाती हैं
तुम साथ होते हो मेरे चेहरे की रौनक देख चांदनी भी शरमा जाती हैं
बिन तेरे ये रात रानी की महक भी बदबू सी लगती हैं
तुम साथ होते हो तो तेरे बदन की खुशबू रजनीगंधा सी हो जाती हैं
बिन तेरे ये रातें कांटों भरा बिचौना बन जाती हैं
तुम साथ होते हो तो फूलों की सेज बन जाती हैं
शकुंतला अयोध्या
 (फैज़ाबाद)

11 comments:

  1. प्रेम रस में भीगी सुन्दर कृति..

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    1. शुक्रिया जिज्ञासा जी

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  2. जी शुक्रिया आदरणीया
    मैं जरूर उपस्थित रहुंगी

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  3. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी शुक्रिया आदरणीय ओंकार जी

      Delete
  4. वाह
    बहुत सुंदर
    बधाई

    ReplyDelete

अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....