Translate

Monday 8 January 2018

गुमसुम ख्यालात में खोई हैं

एक मुद्दत से जिंदगी नहीं सोई हैं
मेरी हालत पर शबनम भी बहुत रोई हैं

हर तरफ रेत के ज़र्रों पर है पानी के निशान
इस उल्फ़त में कोई रूह बहुत रोई हैं

इक परछाई बड़ी देर से घेरे है मुझे
ये ग़में इश्क़ ज़रा देख इधर कोई हैं

जिंदगी एक मकान ढूंढ़ रही हैं कब से
थक के वो मेरी पनाहों में अभी सोई हैं

आपने दिल से लगाया जब से शकु को
तब से गुमसुम ख्यालात में खोई हैं
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद

कहाँ खो गई हो तुम

कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...