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Monday 30 October 2017

मिलना बिझड़ना

मिलन जुदाई का क्या वास्ता
जिंदगी भी तो है एक रास्ता

जन्म से साथ चलने वाले दुखों से
खुशी का एक पल भी तो हैं एक रास्ता

तुझको तेरे अपनों का वास्ता
जो हुये न अपने उनसे क्या वास्ता

भीड़ या महफ़िल से क्या वास्ता
जो अकेला न तय कर सके रास्ता

धूप और छाँव का कब हुआ है मिलन
वैसे भी अब किस्मत पे अपनी हैं न आस्था
©®@शकुंतला
     फैज़ाबाद

इंसान बनना ही कठिन हैं

पथ वरण करना सरल है,
पथिक बनना ही कठिन है।
दुख भरी एक कहानी सुनकर,
अश्रु बहाना तो सरल है।
बांध कर पलकों में सावन,
मुस्कुराना ही कठिन हैं
स्वार्थ की जलती चिता पर,
स्वयं जलना तो सरल हैं।
दूसरों का पक्षधर कर,
होम होना ही कठिन हैं।
किसी से जीत करके,
वीर बनना तो सरल हैं।
पर उन्हें विजयी बनाकर,
हार जाना ही कठिन हैं।
स्वर्ग में रहकर हमेशा,
देव बनना तो सरल हैं
पर धरा पर रह करके,
इंसान बनना ही कठिन हैं।
        ©®@शकुंतला
               फैज़ाबाद

कहाँ खो गई हो तुम

कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...