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Monday, 30 October 2017

मिलना बिझड़ना

मिलन जुदाई का क्या वास्ता
जिंदगी भी तो है एक रास्ता

जन्म से साथ चलने वाले दुखों से
खुशी का एक पल भी तो हैं एक रास्ता

तुझको तेरे अपनों का वास्ता
जो हुये न अपने उनसे क्या वास्ता

भीड़ या महफ़िल से क्या वास्ता
जो अकेला न तय कर सके रास्ता

धूप और छाँव का कब हुआ है मिलन
वैसे भी अब किस्मत पे अपनी हैं न आस्था
©®@शकुंतला
     फैज़ाबाद

8 comments:

  1. जन्म के साथ चलने वाले दुखो से
    खुशी का एक पल भी तो है एक रास्ता...
    एकदम सटीक....
    सुन्दर ,बहुत सुन्दर...

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    1. शुक्रिया सुधा दी....कम से कम आपने इस कविता को पढ़ा तथा सराहा...नही तो मुझे लग रहा था कि मैंने कुछ व्यर्थ सा लिख दिया हैं

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  2. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 10/04/2018 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  3. जी बहुत बहुत आभार
    मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद

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  4. बहुत सुंदर रचना!!

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    1. शुक्रिया शुभा जी

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  5. तुझको तेरे अपनों का वास्ता
    जो हुये न अपने उनसे क्या वास्ता------- वाह !!प्रिय शकू बहुत सुंदर शेरों से सजी रचना | सस्नेह ----

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    1. शुक्रिया रेणु दी

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....