सिर्फ़ जिंदा ही हैं हम मां
जीना क्या है ये तो हम भूल ही गए हैं
तुम थी तो त्यौहार त्यौहार सा लगता था
अब तो ये केवल रस्में ही रह गई हैं
तुम थी तो रसोई से खुश्बूयें आती थी
अब तो केवल बर्तनों की आवाजें आती हैं
तुम थी तो हम कितना झगड़ते लड़ते रहते थे
अब तो केवल खामोशियों ही पसरी रहती है
मां तुम बिन सिर्फ़ और सिर्फ़ खालीपन हैं
कुछ भी नहीं रहा शकुंतला के इस जीवन में
शकुंतला
अयोध्या ( फैजाबाद)