इश्क की आग से दामन को बचाये रहिये
ये तो वो खुशबू हैं इसे तन मन में बसाये रखिये
उठाते हैं प्यार में जो नफ़रत की दीवारें
आप उस दीवार को हमेशा गिराते रहिये
यूँ तो हर शख्स बदल लेता है चेहरा अपना
पर अपने चेहरे की मासूमियत यूँही बनाये रहिये
कौन होता हैं बुरे वक़्त में हाला-शरीक
पर भरोसा किसी एक इंसान पे बनाये रखिये
ग़म की आग में जलना ही मुहब्बत हैं यहां
फिर भी एक शय में इक वफ़ा की शमा जलाये रखिये
न तो शिकवा न कोई गिला हैं तुमसे
इल्तिज़ा इतनी हैं बस अपने दिल में बसाये रहिये
©®@ शकुंतला
फैज़ाबाद