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Tuesday 19 September 2017

औरत की जिंदगी

कितना बड़ा प्रश्न हैं औरत की जिंदगी,
मज़बूरियों का ज़श्न हैं औरत की जिंदगी।

ये ज़ुल्म बलात्कार तो चाँटे की तरह हैं,
जैसे सहलाया हुआ गाल हैं औरत की जिंदगी।

गॉंवों ने गर कुचला तो शहरों ने उछाला,
जैसे कोई फुटबॉल हैं औरत की जिंदगी।

खुशबुएँ बाँटी जिसने तमाम उम्र,
काँटो भरी वो डाल हैं औरत की जिंदगी।

चुनरी की जगह तो इसको कफ़न तो न दीजिए,
वैसे भी तंग हाल हैं औरत की जिंदगी।।

                                    ©®@ शकुंतला
                                    फैज़ाबाद

20 comments:

  1. बहुत आभार सुधा जी

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    1. मेरी इस छोटी सी कोशिश को आपने पसंद किया आभार नीतू जी

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  4. लाज़वाब रचना शकुंतला जी. सादर

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    1. थोडी सी कोशिश की हैं अपर्णा जी...आपको पसंद आई हम धन्य हुए

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  5. गॉंवों ने गर कुचला तो शहरों ने उछाला,
    जैसे कोई फुटबॉल हैं औरत की जिंदगी।

    Wahhh। बहुत गम्भीर। बहुत संजीदा। बहुत ही उम्दा

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    1. बहुत बहुत बहुत आभार अमित जी मेरी थोड़ी सी कोशिश आपको पसंद आई

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  6. एक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!

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    1. शुक्रिया संजय जी

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  7. गहरी उर गम्भीर बात हर शेर में ...
    नारी दिवस शायद इसलिए ही है की नारी आज शपथ ले की ऐसे हालात का डट में सामना करेगी .।.

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    1. काश ऐसा हो जाए तो कभी किसी महिला का कभी भी अपमान नही होगा

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  8. वाह!!बहुत खूब ।

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  9. चुनरी की जगह तो इसको कफ़न तो न दीजिए,
    वैसे भी तंग हाल हैं औरत की जिंदगी।।------------ बहुत खूब प्रिय शकू |

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    1. शुक्रिया प्रिय नीतू जी

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