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Sunday, 25 November 2018

रूहानी मोहब्बत-माँ

रूहानी मोहब्बत की दास्तां हैं माँ
हर इंसान की पहली मोहब्बत हैं माँ
धरा पर ईश्वर का प्रतिरूप हैं माँ
पूरे विश्व का एक ब्रह्माण्ड हैं माँ
आँखो से छलकता हुआ सागर हैं माँ
हर खुशी हर गम में बहता मीठा झरना है माँ
हम गुस्से में हो तो प्यार भरी जादू की झप्पी हैं माँ
जब वो नाराज़ हो सबसे तो प्यार भरी छपकी है माँ
माणिक्य प्रकाश सी घर आंगन का लरजता दीपक हैं माँ
परिवार के हर मनके को जोड़नेवाला धागा हैं माँ
सबकी बलाए नज़रे उतारनेवाला काला टीका हैं माँ
खुद को भूखा रख हर निवाला ख़िलानेवाली अन्नपूर्णा हैं माँ
तपती धूप में आँचल का साया हैं माँ
सूखे कण्ठ को तर करनेवाली ठंडाई हैं माँ
छाती का अमृत पिलानेवाली पवित्र गंगा हैं माँ
तीनों जहां में छाई हुई रूहानी मोहब्बत हैं माँ...
©®@शकुंतला
अयोध्या(फैज़ाबाद) न

14 comments:

  1. सूखे कण्ठ को तर करनेवाली ठंडाई हैं माँ
    छाती का अमृत पिलानेवाली पवित्र गंगा हैं माँ
    तीनों जहां में छाई हुई रूहानी मोहब्बत हैं माँ...
    वाह ! प्रिय शकुन्तला -- बहुत ही मधुर और स्नेहसिक्त शब्दों में माँ की महिमा को पिरोया है | सस्नेह आभार और शुभकामनाये |

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    1. अस्वस्थ होने की वजह से कुछ लिख नही पा रही थी आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखने की कोशिश की हैं आपको अच्छी लगी तो मुझे भी अच्छा लगा शुक्रिया रेणु जी

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  2. "...
    हम गुस्से में हो तो प्यार भरी जादू की झप्पी हैं माँ
    जब वो नाराज़ हो सबसे तो प्यार भरी छपकी है माँ
    ..."

    बहुत ही सुन्दर, पवित्र और माँ-सी रचना।

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  3. जी बहुत आभार आदरणीय

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 02 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. बहुत सुन्दर

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    1. शुक्रिया ओंकार जी

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  6. बहुत सुंदर भाव और लाज़वाब संदेश...वाहह👌
    जल्दी से पूर्णतया स्वस्थ हो जाइये...बहुत शुभेच्छाएँ मेरी।

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    1. बहुत आभार स्वेता जी

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  7. छाती का अमृत पिलानेवाली पवित्र गंगा हैं माँ
    तीनों जहां में छाई हुई रूहानी मोहब्बत हैं माँ...
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  8. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार🌷

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....