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Friday, 21 May 2021

रोक लेना था मुझे

एक बार 
बस 
एक बार
रोक लेना था मुझे....
तुमने एक बार 
आवाज़ तो दी होती
मैं न रुकती
 तो
इसमें मेरी खता होती
मेरे कदम 
रुक रुक के
पड़ रहे थे
बस 
एक आवाज़ दे कर
रोक लेना था मुझे....
लगा कर
सीने से मुझे
बस इतना कह देते
मैं हूं न......
मैं सबकुछ छोड़कर
तुम्हारी हर 
खता भूलकर
एक नई शुरुआत करती मैं
पर 
जब मैंने मुड़कर देखा
तुम तो जा चुके थे
मैं इंतजार करती रह गई
रोक लेना था मुझे...
यह सुनने के लिए 
मैं हूं न....
शकुंतला
अयोध्या फैज़ाबाद


13 comments:

  1. जी बहुत आभार आदरणीया दी मैं ज़रूर उपस्थित रहुंगी

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  2. बहुत बढ़िया

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    1. जी शुक्रिया आदरणीय

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  3. ज़िन्दगी में कभी कभी हम दूसरों से अपेक्षा करते रहे जाते हैं ।
    काश एक कदम हम ही स्वयं आगे बढ़ जाएँ ।
    भावों का अच्छा सम्प्रेषण ।

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    Replies
    1. जी सही कहा आपने आदरणीया

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  4. छोटी-छोटी बातें कब बड़ी बनकर आपसी प्रेम में कडुवाहट भर देते हैं, इसका पता बहुत कुछ खोने के बाद भी नहीं चल पाता है

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    1. प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए बहुत आभार आदरणीया

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  5. सुंदर सृजन ।

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    1. शुक्रिया शुभा जी

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  6. वाह बहुत सुंदर सृजन ।

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    1. धन्यवाद आदरणीय

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  7. Replies
    1. जी शुक्रिया आदरणीय मनोज जी

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मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....