Translate

Friday 9 April 2021

मेरा कमरा जानता है

मेरा कमरा जानता है......
मैं कितनी भी लापरवाह रहूं पर
हर चीज को करीने से ही रखूंगी
कमरे का कोना कोना 
बड़े ही प्यार से सजाऊंगी
मेरा कमरा जानता है.....
कि मैंने न जाने कितनी सारी 
यादों को संजो के रखा है
न जाने कितनी बातें सांझा की है
मेरा कमरा जानता है..…
मेरे बचपन की कितनी खट्टी मीठी बातें
न जाने कितनी रातें मां के प्यार
दुलार,लोरियों के बिना काटी है
मेरा कमरा जानता है कि
मैं कितना रोई थी मां के जाने के बाद
मेरा तकिया भी मेरे साथ रोता है हर पल
हर तरफ बस मां की यादें हैं
मेरा कमरा जानता है .....
वो दादाजी और दादीजी की प्यार भरी बातें 
मेरी हर ज़िद को पूरा करना 
मां मारती तो दादी डांटती दादा दुलार करते
मेरा कमरा जानता है .......
हम भाई बहनो का आपस का जुड़ाव
वो लड़ना झगड़ना फिर एक हो जाना
एकदूसरे की गलतियों को छुपा लेना
मेरा कमरा ही जानता है..…
कितने अकेले हो गए हैं हम और हमारा कमरा
बस जुड़ी है सारी बातें , यादें ,वादे ,कसमें, झगड़े ,लोरिया,त्योहार, पागलपन सब कुछ 
मेरा कमरा ही जानता है ...…
शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)

20 comments:

  1. Replies
    1. जी शुक्रिया आदरणीय

      Delete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-04-2021) को   "आदमी के डसे का नही मन्त्र है"  (चर्चा अंक-4033)    पर भी होगी। 
    -- 
    सत्य कहूँ तो हम चर्चाकार भी बहुत उदार होते हैं। उनकी पोस्ट का लिंक भी चर्चा में ले लेते हैं, जो कभी चर्चामंच पर झाँकने भी नहीं आते हैं। कमेंट करना तो बहुत दूर की बात है उनके लिए। लेकिन फिर भी उनके लिए तो धन्यवाद बनता ही है निस्वार्थभाव से चर्चा मंच पर टिप्पी करते हैं।
    --  
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।    
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी मयंक जी मैं जरूर उपस्थित रहुंगी 🙏🏻

      Delete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार १० अप्रैल २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आदरणीया श्वेता जी
      मैं जरूर उपस्थित रहुंगी

      Delete
  4. मेरा कमरा जानता है...
    समय के साथ कितना तन्हा हो चला ,
    कब, नव-चिलकारियों से फिर वो भरा

    सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी शुक्रिया आदरणीय 🌷

      Delete
  5. यादों के भंवर में डूबती -उतराती बेहतरीन रचना -भावबिम्ब सजीव -जी हाँ कमरे की दीवारें बोलती भी हैं सुनतीं हैं चहचहाती भी हैं ,हमारे संग रुदाली भी बनती हैं। दीवारों से एक माहौल की सृष्टि होती है-हमारे सुख की, अंतरंग क्षणों की साक्षी बनतीं हैं दीवारे -तुम कहते हो दीवारें सिर्फ दीवारें -वह कहता ज़िंदा शख्सियत ,संवेदना का स्रोत होती हैं हंसती बोलती गाती दीवारें ,मैं तो सिर्फ सहभावी बना हूँ सहभोक्ता भी आप भी सांझा करें दीवारों को बधाई दें आशीष दें शकुंतला जी की इस रचना को।
    वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )
    veerubhai1947.blogspot.com
    veerujan.blogspot.com

    विशेष :आपकी यह रचना मैं ने राम राम भाई ब्लॉग पे सांझा की है पुनर्प्रकाशित की है।

    मेरा कमरा जानता है......
    मैं कितनी भी लापरवाह रहूं पर
    हर चीज को करीने से ही रखूंगी
    कमरे का कोना कोना
    बड़े ही प्यार से सजाऊंगी
    मेरा कमरा जानता है.....
    कि मैंने न जाने कितनी सारी
    यादों को संजो के रखा है
    न जाने कितनी बातें सांझा की है
    मेरा कमरा जानता है..…
    मेरे बचपन की कितनी खट्टी मीठी बातें
    न जाने कितनी रातें मां के प्यार
    दुलार,लोरियों के बिना काटी है
    मेरा कमरा जानता है कि
    मैं कितना रोई थी मां के जाने के बाद
    मेरा तकिया भी मेरे साथ रोता है हर पल
    हर तरफ बस मां की यादें हैं
    मेरा कमरा जानता है .....
    वो दादाजी और दादीजी की प्यार भरी बातें
    मेरी हर ज़िद को पूरा करना
    मां मारती तो दादी डांटती दादा दुलार करते
    मेरा कमरा जानता है .......
    हम भाई बहनो का आपस का जुड़ाव
    वो लड़ना झगड़ना फिर एक हो जाना
    एकदूसरे की गलतियों को छुपा लेना
    मेरा कमरा ही जानता है..…
    कितने अकेले हो गए हैं हम और हमारा कमरा
    बस जुड़ी है सारी बातें , यादें ,वादे ,कसमें, झगड़े ,लोरिया,त्योहार, पागलपन सब कुछ
    मेरा कमरा ही जानता है ...…

    शकुंतला

    अयोध्या (फैज़ाबाद)

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आदरणीय
      मेरी रचना को स्थान देने के लिए
      मैं जरूर उपस्थित रहुंगी 🙏🏻

      Delete
  6. Replies
    1. जी शुक्रिया आदरणीया 🙏🏻🌷

      Delete
  7. कितने अकेले हो गए हैं हम और हमारा कमरा
    बस जुड़ी है सारी बातें , यादें ,वादे ,कसमें, झगड़े ,लोरिया,त्योहार, पागलपन सब कुछ
    मेरा कमरा ही जानता है ...…


    भावों से भरी लाज़बाब सृजन ,सादर नमन आपको

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी शुक्रिया आदरणीया,🙏🏻🌷

      Delete
  8. मैं और मेरा कमरा ..... यादों की धरोहर को संजोए रहता है ।। बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत शुक्रिया आदरणीया संगीता जी

      Delete
  9. जिस कमरे में आप रहते हैं वाकई उससे बहुत सारी यादें जुडी होती हैं...खट्टी मीठी छोटी बड़ी
    बहुत सी यादें...

    चलो उठो, बनो विजयी हार ना मानो तुम

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार आदरणीय 🌼

      Delete

कहाँ खो गई हो तुम

कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...