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Thursday 8 April 2021

मैं स्त्री हूं

सब जानते हैं पहचानते भी है पर
मुझे मेरे नाम से क्यूं नही
जन्म लिया स्त्री के रूप में पर 
मेरी कोई पहचान क्यों नहीं
कोई कहता देखो फलनवा की बेटी हैं
सुनकर गौरांवित तो होती हूं पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की बहन हैं
सुन कर दिल गदगद हो जाता है पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की पत्नी हैं
सुन कर मन नाच उठता है पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की बहु हैं
सुनकर समाज की नजरों में सम्मान मिल तो जाता हैं पर इसमें मैं कहां हूं
कोई कहता देखो फलनवा की मां है
सुनकर अभिमान से भर उठती हूं पर इसमें मैं कहां हूं
पर जो मैं सुनना चाहती हूं उसे कोई क्यों नहीं कहता मै स्त्री हूं...
क्या मेरा कोई स्थान नहीं है क्या मेरा कोई आस्तित्व नही है
क्या हम स्त्रीयां हमेशा पुरुषों के नाम से ही जानी जायेंगी
नही... मैं स्त्री हूं शक्तिपुंज हूं यह अलख हमेंं जगानी होगी  
हर स्त्री को चिरनिद्रा से जागना होगा अपनी पहचान
बनानी होगी..… अपनी पहचान बनानी होगी
शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)

18 comments:

  1. सही प्रश्न। समाज के साथ साथ स्वयं को भी जवाब देना होगा।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीय विश्वमोहन जी

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    1. जी शुक्रिया आदरणीय मयंक जी

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-०४-२०२१) को 'एक चोट की मन:स्थिति में ...'(चर्चा अंक- ४०३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया अनीता जी
      मैं जरूर उपस्थित रहुंगी 🙏🙏🙏

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  4. प्रिय शकु , आपने बहुत ही वहां विवेचना की है स्त्री के व्यक्तित्व की जो बहुत बहुत विचारणीय है | सस्नेह शुभकामनाएं|

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया दी 🌷🌹

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  5. बहुत सुन्दर सार्थक रचना । यह बात मैंने अपनी कहानियों मैं तरह तरह से उठाई है ।

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    1. जी बहुत आभार आदरणीय
      मैं भी आपकी कहानियों को जरूर पढ़ूंगी

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  6. अंतर्मन के कुछ जटिल प्रश्न ।
    शायद हर निकले।
    सुंदर सृजन।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया 🌼

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  7. सशक्त सृजन ।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया

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  8. सड़क पर चलते हुए हर सभ्य व्यक्ति की सभ्यता में छिपी होती है एक माँ।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीय विमल जी

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  9. बहुत सुंदर और सार्थक रचना।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया दी🌷

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