Translate

Saturday, 31 March 2018

अधूरी -अनकही बात

कई दफ़ा सोचा बतलाऊँ तुम्हें
अपने दिल की बात
बात जो नन्ही सी है
परंतु अर्थ उसका
क्षितिज तुल्य विशाल
मुझे तो केवल मलाल हैं इस बात का
न मैं कह सकी और न तुम समझ सके
जबकि अगल बगल के सभी लोग समझ गए
उस अनकही बात को
आज भी कभी जब
वह बात याद आती हैं
किसी तन्हा रैन को
रो लेती हूँ बस सोचकर यही
सबकी किस्मत में
दिल की बात पूरी होती नही
बात केवल इतनी सी हैं
यदि मिल जाते तुम मुझे
तो शायद........
मैं होती न इतनी अधूरी
©®@शकुंतला
         फैज़ाबाद ।


15 comments:

  1. वाह !!! बहुत खूब .... शानदार रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रिय नीतू जी शुक्रिया🌹🌹

      Delete
  2. यदि मिल जाते तुम मुझे
    तो शायद........
    मैं होती न इतनी अधूरी
    लाजवाब...
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया सुधा दी

      Delete
  3. बहुत आभार आदरणीय🌷

    ReplyDelete
  4. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/04/63.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार आपका मेरी रचना को मित्रमंडली में स्थान दिया🌷🌷🌷

      Delete
  5. इस अधूरेपन में भी इतनी पूर्णता है कि इस्तनि गहरी बात इतने सरल शब्दों में सम्प्रेषित कर दिया अति सुंदर दीदी

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह धन्यवाद सुप्रिया🌹🌺🌹🌺

      Delete
  6. आज भी कभी जब
    वह बात याद आती हैं
    किसी तन्हा रैन को
    रो लेती हूँ बस सोचकर यही
    सबकी किस्मत में
    दिल की बात पूरी होती नही
    बात केवल इतनी सी हैं
    यदि मिल जाते तुम मुझे
    तो शायद........
    मैं होती न इतनी अधूरी वाह बेहतरीन रचना शकुंतला जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया अनुराधा जी आपकी इतनी अच्छी प्रतिक्रिया से लिखने का और भी मन करता हैं बहुत आभार🌹🌷

      Delete
  7. अनुपम अभिव्यक्ति
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete

अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....