बचपन की मेरी प्यारी
सहेली.........फुररगुद्दी
करके सुना अँगना मेरा
कहाँ चली गई तुम..... फुररगुद्दी
रोज़ सवेरे आती थी
फुदक फुदक कर अँगना मेरे.....फुररगुद्दी
बड़ी हुई संग तेरे
मैं भी उड़ी लगाके सपनों के पंख....फुररगुद्दी
हर आहट पर चौंक कर
सरररर से उड़ जाती तुम......... फुररगुद्दी
पछिलाहरा की चहचहाहट
कहाँ ले गई तुम ..........फुररगुद्दी
सुनी पड़ी दोछत्ती मेरी
जहां घोंसले में चहकते थे बच्चें तेरे.....फुररगुद्दी
कब आओगी मेरी बगिया में
फिर से फूलों पर फुदकने तुम ..........फुररगुद्दी
शकुंतला
फैज़ाबाद
प्रिय शकू---- सचमुच वो प्यारी गौरैया बहुत याद आती है | आपकी रचना ने कुछ ज्यादा ही याद दिला दी --------- सस्नेह -----
ReplyDeleteचित्र और भी मनमोहक है प्रिय शकू --
ReplyDeleteबहुत आभार रेणु दी
Deleteवाहःह बहुत खूब
ReplyDeleteजी बहुत आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना, शकुंतला जी।
ReplyDeleteजी शुक्रिया
ReplyDeleteनोस्टालजिक रूमानियत से भरपूर फद्गुदी की यादें! बहुत सुन्दर रचना!!! बधाई!!!
ReplyDeleteजी बहुत आभार🌹
Deleteऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
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