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Friday, 3 August 2018

आज के बुजुर्गों की दशा

*एक दिन की बात थी
मैं बैठी थी ऑटो में
मुझे एक *बुज़ुर्ग मिल गये*
बैठे मेरे सामने वाली सीट पर
देख उन्हें लगा
आ गए मेरे दादाजी
लेकर रूप उनका
बार बार मैं
निहारती चेहरा उनका
वो भी बार बार देखते मेरा चेहरा
फिर हर चौराहे पर
कहते मुझसे बहनी-बच्ची
अस्पताल आ जाई
तो बताई देहु
हर दस मिनट पर
मुझे हिलाकर कहते
बहनी-बच्ची अस्पताल आई गईल
न पैसा हाथ में
न कोई बेटा बेटी साथ में
उम्र के इस पड़ाव में
न कोई हैं साथ देने वाला
अचानक मैंने पूछा ही लिया
बाबा अकेले जा रहे हो
छलक आई उनकी बूढ़ी
आँखों से आँसू की धारा
कहने लगे
हैं चार बेटे-बहू मेरे
सब हैं ऊँचे ओहदे पर
नही है टेम किसी के पास
रहिला बिन माई के नातिन के साथ
सुन कर भर आये नयन मेरे
थे मेरे पास कुछ रुपये
देकर मैंने उनको कहा
बाबा मैं कुछ कर तो नहीं सकती
पर इनसे करवा लो इलाज अपना
हाय रे........
ये कैसी विडम्बना हैं
जो माता-पिता अपनी औलादों को
बादशाहों की तरह पालते हैं
जब वो बूढ़े हो जाते हैं
तो उन्हें पालने वाला
नही होता हैं कोई ?*
*CR@शकुंतला
       फैज़ाबाद*

14 comments:

  1. मार्मिक रचना

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  2. हकीकत से रूबरू करवाने वाली रचना

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  3. प्रिय शकु---- बहुत ही मर्मस्पर्शी प्रसंग पिरोया है आपने रचना में |सब कुछ मानों आखों के सामने ही लग रहा था था | यही कहूँगी .कि लानत है ऐसे बहूँओं पर नहीं बल्कि बेटों पर ===क्योकि बहूंए तो फिर भी पराये घर से आई होती हैं -- बेटों को तो सीने से लगा कर पालते है |माता-पिता बचपन में ना जाने किन -किन चौखटों पर सर झुकाते हैं पहले जन्म के लिए--फिर उनकी कुशलता के लिए |उनसे ही ऐसी कृतघ्नता क्यों ???????सराहनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई |

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    1. ये सत्य घटना है जिसे मैंने शब्दों में बंधने की कोशिश की है
      आपको पसंद आई बहुत आभार🌹🌹🌹🌹

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  4. वर्तमान समय का सत्य शब्दों में भर दिया है दीदी,और एकदम सजीव चित्रण हृदयस्पर्शी रचना है

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  5. Sach me di bahut hi sunder likha hai apne

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  6. Replies
    1. 🌹धन्यवाद लोकेश जी

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  7. मर्मस्पर्शी रचना। यही यथार्थ भी है।

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    1. 🌹🌹बहुत बहुत आभार

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....