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Saturday, 11 August 2018

शहीद की पत्नी

*मैं तो हूँ एक सैनिक की पत्नी
जानती हूँ वो गए हैं
करने देश की सेवा
फिर भी मन करता है
हो हर पल हर वक़्त
वो साथ सदा मेरे
दुल्हन बनें कुछ दिन भी
न गुजरे थे
तुम चल दिये फिर सरहद पर
मैं बांट जोतती की तुम आओगे
बीत गए कुछ महीने
पता चला एक नन्हा सा अंश
पल रहा है मेरे कोख़ में
इंतज़ार मुझे रहता कब आओगे
मेरे कोख़ में पल रहे अंश को
तुम कब स्पर्श करोगे....
धीरे धीरे बीत गए नौ माह
पर तुम न आए
मैं माँ-बाबूजी के साथ
हॉस्पिटल में कर रही थी
इंतजार आपका....
दर्द और हर्ष के इस पल में
मन में लिए आपके साथ की इच्छा
अंदर ही अंदर कचोट रही थीं
यही सोचते सोचते
कब मैंने दर्द को सहते हुए
नन्हें से बेटे को जन्म दे दिया
पता ही नहीं चला
उसकी सूरत देखते ही
मैं निहाल हो गई
अब......
मैं और वो दोनों कर रहे थे
आपका इंतजार
पर....
हाय!!!!ये कैसी खबर आई
माँ ने मेरे माँग का सिंदूर
हाथ की चूड़ियां
पैरों का बिछुआ
सुहाग की सब
निशानियों को मिटाने लगी
मैं आवक सी देखती रही
आँखे जैसे पथरा गई हो
कभी मुन्ने को देखती
कभी माँ को
हे ईश्वर.....
क्या केवल इतने ही दिनों का
साथ दिया था
फिर अचानक याद आया......
मैं .....तो अब हूँ
एक देशभक्त
शहीद की पत्नी**
*©®@शकुंतला
*फैज़ाबाद*

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. 🌷बहुत आभार मेरी रचना को शामिल किया आपने मैं अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करुँगी

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  2. मार्मिक ...
    एक सैनिक की पत्नी की डायरी की तरह अओकी बेमिसाल रचना ...
    नमन है देश के सैनिकों को और और उनके परिवार वालों को भी ... भावपूर्ण रचना ...

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  3. शुक्रिया आपको पसंद आई मेरी कविता🌹

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  4. बहुत ही बड़ा दिल चाहिए इस तरह के जज्बे के लिए | प्रिय शकु बहुत ही मर्मस्पशी लिखा आपने | सस्नेह --

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    1. धन्यवाद रेणु दी🌷🌹

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....