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Wednesday 10 March 2021

कंक्रीट के जंगल

जहां देखो मकान ही मकान
कहीं घर मिलता ही नहीं अब
कट गए सब पेड़ पल्लव
कहीं छांव अब मिलती नहीं
नहीं रहे वो खेत खलिहान
बन रही सब धरती बंजर
पढ़ लिखकर बन रहे सब साहब
किसान कोई नहीं बनना चाहता अब
कैसे नई पीढ़ी को दिखाएंगे हम
जो उगाई थीं फसलें हमारे बुजुर्गो ने
आधुनिकता की चाहत में हम
भूल गए अपनी संस्कृति-संस्कार 
धोती कुर्ता छोड़ पहन लिया अंग्रेजी परिधान
दस हाथ की साड़ी छोड़ शर्म हया सब चली गई
अपनी विरासत को दांव पर लगा कर
चल दिए हम शामिल होने इस विकास की दौड़ में
ये ऊंचे ऊंचे कंक्रीट के जंगल तो
खड़े कर लिए हम इंसानों ने पर 
इनमें अपनापन,प्यार,रिश्तों में जुड़ाव जैसे 
उर्वरकों को डालना भूल गये है हम
डर लगता हैं हमारी आने वाली पीढ़ी
इस आधुनिकता की होड़ में 
अपना सर्वस्व न कर दे न्यौछावर 
शकुंतला फैज़ाबाद 
अयोध्या

18 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना।
    --
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. शुक्रिया आदरणीय मयंक जी

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  2. भावहीन होता जा रहा ये संसार।
    बड़ी सुंदर रचना है ये।
    नई रचना पधारिये।

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    1. जी शुक्रिया रोहितास जी

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  3. सुन्दर रचना

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    1. जी शुक्रिया मनोज जी 🌼

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  4. यथार्थपूर्ण रचना ..सामयिक चिंतन..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी अवश्य भ्रमण करें..सादर ।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीय जिज्ञासा जी

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया पम्मी जी
      मै जरूर उपस्थित रहुंगी

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  6. सब विकास की दौड़ में भाग रहे ये जाने बिना की हम क्या खो रहे हैं ।
    सार्थक संदेश देती रचना ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया दी

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  7. Replies
    1. जी शुक्रिया आदरणीया ऊषा जी

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  8. प्रिय शकु ,बहुत भावुक करने वाली रचना लिखी आपने कंक्रीट के जंगलों की नींव में खेतों की हरियाली हमेशा के लिए जमींदोज हो गयी है | अब कहाँ मिलेंगे वो हरियाले गाँव और स्नेह की ठाँव|

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    1. रेणु दी आपकी प्रतिक्रिया का बहुत समय से इंतजार कर रही थी आज पूरी हुई तमन्ना❤️

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  9. बहुत बहुत सराहनीय रचना

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    1. जी बहुत आभार आदरणीय आलोक जी

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