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Friday, 1 January 2021

महंगे अरमान

जब बच्चे थे हम तो हर चीज़ बड़ी 
आसानी से मिल जाती थी 
एक बार मुंह से निकला नहीं
 कि पापा झट से ला देते
अब तो हर अरमान महंगे हो गए हैं
पति के घर आकर पता चला कि चीज़े
आसानी से नहीं मिलती
हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती हैं
थोड़ा सा दुलार प्यार की चाहत में
अपना हर सुख चैन गवाना पड़ता हैं
शकुंतला अयोध्या( फैज़ाबाद)

17 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. शुक्रिया आदरणीय मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार 🙏🙏🌷🌷

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  2. जीवन की कड़वी सच्चाई दर्शाती रचना।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. शुक्रिया आदरणीय

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  4. सटीक तथ्य प्रस्तुत किया है आपने..सुंदर सृजन..।

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया

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  5. आदरणीया शकुन्तला जी, बहुत दिनों बाद पुनः आपके ब्लॉग पर आ पाया हूँ। आह्लादित हूँ कि आपकी रचनाओं का रसास्वादन पुनः कर पाया। शुभकामनाएँ स्वीकार करे।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
      आप लोगों के स्नेह और प्रोत्साहन से पुनः लिखने का प्रयास कर रही हूं

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  6. बड़े होकर लगता है काश कि बड़े न होते, बच्चे ही रहते

    बहुत अच्छी रचना

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया कविता जी
      बचपन से जुड़ी हर बात अनमोल होती है

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  7. हृदयस्पर्शी रचना..।

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....