ये शाम जब भी आती हैं
तेरी यादों का
सैलाब उमड़ जाता हैं
और हम तेरी यादों के
समुंदर में डूबते
ही चले जाते हैं
तेरा इंतजार करते करते
कब भोर की
पहली किरण
मुझ पर पड़ी पता ही नहीं चला
तुम आओगे हमे है यकीन
इसी आशा में जी रही हूं मैं
मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय 🙏🌷🌷
Deleteमै जरूर उपसिथ रहूंगी
आशा सफल हो
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया
Deleteयादों का सैलाब ...
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण रचना...बहुत सुंदर 🙏🌹🙏
शुक्रिया आपका आदरणीया 🌷🌷🌷
Deleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत आभार आदरणीया 🌷🌷🌷
Deleteआशा पर संसार जीवित है। उम्मीदों की लौ जगाये मन की भावपूर्ण दास्ताँ।
ReplyDeleteशुक्रिया दी💖
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