Translate

Saturday, 16 February 2019

दरख़्त पलाश का

सुनो......
याद है न तुम्हें
वो दरख़्त पलाश का
वो हमारी पहली
मुलाकात का गवाह.....
जब मैं... आप
हम
हो गए थे
हमारा प्यार
पलाश के फूलों
की तरह खिलने
लगा था......
तुम्हारी वो प्यार भरी
मीठी-मीठी बातें
कब मेरी आत्मा में
समा गई
कब .मैं.......मैं. न रही
मुझे पता ही नहीं चला
तुम्हारे प्यार का रंग
ऐसा चढ़ा मुझ पर
जैसे फाग में चढ़. जाता है
पलाश के फूलों का रंग
तुम्हरा प्यार पा कर
खिल उठी थी मैं
पलाश की तरह
बिन तेरे प्यार के
हूँ मैं अब लाश की तरह
सुनो......
चलो एक बार फिर
उसी .पलाश के दरख़्त
के तले
फिर से हम
एक नई शुरुआत करते हैं
जीवन की बगिया में
लाश के फूल खिलाते हैं
*शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)*

8 comments:

  1. पलाश का फूल न जाने अनंत से क्यों जुदा है प्रेम के साथ ...
    शायद दहकते मन की गूँज इससे बेहतर कोई नहीं कह पाता ... लाजवाब रचना है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आदरणीय

      Delete
  2. बहुत सुंदर! बेहतरीन पंक्तियाँ....

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 30 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete

अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....