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Saturday, 9 February 2019

नज़र

*नज़र से नज़र
मिला के
यूँ नज़र से
गिर जाओगे
हमें पता न था
मोहब्बत के हसीन
ख़्वाब दिखा के
यूँ छन्न से
तोड़ जाओगे
हमें पता न था
जिन्हें हमने
शरीके-ज़िंदगी बनाया
बन जाएंगे
वो दर्दे-ग़म
हमें पता न था
जिनके लिए बरसों
बरसीं हैं ये नज़रें
बन जाएंगी
वो मरुस्थल
हमें पता न था
जिनके क़दमों को
चूमा हैं अपनी नज़रों से
उन्ही क़दमों से
मारकर ठोकर मुझे
यूँ चले जाओगे
हमें पता न था
जिनकी हर बलायें
उतारी थी नज़रों से हमने
लग जायेगी
उन्हीं की नज़र
हमें पता न था**
**शकुंतला**
*अयोध्या(फैज़ाबाद)

8 comments:

अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....