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Friday, 24 November 2017

धूल के इस नगर में

किसे पता है धूल के इस नगर में
कहां मृत्यु वरमाला लिए खड़ी है
किसे ज्ञात है प्राणों की लौ छुपाए
चिता में छुपी कौन सी फुलझड़ी है
इसी से यहां पर हर राज जिंदगी  का
न छुप रहा है ना खुल पा रहा है
पूजा के बिना आरती का यह दीपक
न बुझ पा रहा है ना जल पा रहा है
©®@शकुंतला
फैजाबाद

4 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया नीतू जी

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  2. वाह क्या तंज कसा है आपने।
    सकारात्मक क्रिटिसिजम।
    सही है आज के समय में प्रदूषण जि का जंजाल बन गया है।
    दिल्ली की दशा देखकर हमें और सरकार को यही लग रहा है......
    "पूजा के बिना आरती का यह दीपक
    न बुझ पा रहा है ना जल पा रहा है"

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    Replies
    1. शुक्रिया प्रकाश जी

      Delete

अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....