तुम से एक सवाल है मेरा?
यूं कब तक रूठे
रहोगे तुम मुझसे
यूं कब तक इंतजार
करती रहूंगी मैं तुम्हारा
मेरी हर आती जाती सांस
सिर्फ़ पुकारती है तुम्हें
अब आ भी जाओ कहीं
ये दिल धड़कने से
मना न कर दे
न कराओ इतना इंतजार
कहीं ये आंखे तेरे
दरस के लिए खुली की
खुली ही न रह जाएं
शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय 🙏🙏
Deleteकहीं ये आंखे तेरे
ReplyDeleteदरस के लिए खुली की
खुली ही न रह जाएं
विकल मन की अनकही व्यथा की मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय शकू जी | ये उद्बोधन मन को छु गया |
धन्यवाद आदरणीय दी आप की प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हो गया
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी🌼
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
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