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Wednesday, 11 May 2022

तुमसे कोई उम्मीद नहीं

तुमसे कोई उम्मीद नहीं
फिर भी न जानें क्यों सारी उम्मीदें तुमसे ही है
तुमसे कोई ख्वाहिश नही
फिर भी न जाने क्यों सारी ख्वाहिशें तुमसे ही है
तुमसे कोई नाराजगी नहीं
फिर भी न जाने क्यों सारे गिले शिकवे तुमसे ही है
तुमसे प्यार की उम्मीद नहीं
फिर भी न जाने क्यों मोहब्बत सिर्फ़ तुमसे ही है
शकुंतला

7 comments:

  1. सुंदर भावपूर्ण रचना।

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    1. धन्यवाद स्वेता जी

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  2. इसी का नाम प्यार है

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    1. शुक्रिया आदरणीया

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  3. ब्लॉग पर देरी से आने के लिए क्षमा चाहती हूं मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार आदरणीया

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  4. Replies
    1. शुक्रिया आदरणीय

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....