कितना बड़ा प्रश्न हैं औरत की जिंदगी,
मज़बूरियों का ज़श्न हैं औरत की जिंदगी।
ये ज़ुल्म बलात्कार तो चाँटे की तरह हैं,
जैसे सहलाया हुआ गाल हैं औरत की जिंदगी।
गॉंवों ने गर कुचला तो शहरों ने उछाला,
जैसे कोई फुटबॉल हैं औरत की जिंदगी।
खुशबुएँ बाँटी जिसने तमाम उम्र,
काँटो भरी वो डाल हैं औरत की जिंदगी।
चुनरी की जगह तो इसको कफ़न तो न दीजिए,
वैसे भी तंग हाल हैं औरत की जिंदगी।।
©®@ शकुंतला
फैज़ाबाद
मज़बूरियों का ज़श्न हैं औरत की जिंदगी।
ये ज़ुल्म बलात्कार तो चाँटे की तरह हैं,
जैसे सहलाया हुआ गाल हैं औरत की जिंदगी।
गॉंवों ने गर कुचला तो शहरों ने उछाला,
जैसे कोई फुटबॉल हैं औरत की जिंदगी।
खुशबुएँ बाँटी जिसने तमाम उम्र,
काँटो भरी वो डाल हैं औरत की जिंदगी।
चुनरी की जगह तो इसको कफ़न तो न दीजिए,
वैसे भी तंग हाल हैं औरत की जिंदगी।।
©®@ शकुंतला
फैज़ाबाद
बहुत आभार सुधा जी
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरी इस छोटी सी कोशिश को आपने पसंद किया आभार नीतू जी
Deleteलाज़वाब रचना शकुंतला जी. सादर
ReplyDeleteथोडी सी कोशिश की हैं अपर्णा जी...आपको पसंद आई हम धन्य हुए
Deleteगॉंवों ने गर कुचला तो शहरों ने उछाला,
ReplyDeleteजैसे कोई फुटबॉल हैं औरत की जिंदगी।
Wahhh। बहुत गम्भीर। बहुत संजीदा। बहुत ही उम्दा
बहुत बहुत बहुत आभार अमित जी मेरी थोड़ी सी कोशिश आपको पसंद आई
Deleteएक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
Deleteबहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteजी बहुत आभार
Deleteगहरी उर गम्भीर बात हर शेर में ...
ReplyDeleteनारी दिवस शायद इसलिए ही है की नारी आज शपथ ले की ऐसे हालात का डट में सामना करेगी .।.
काश ऐसा हो जाए तो कभी किसी महिला का कभी भी अपमान नही होगा
Deleteवाह!!बहुत खूब ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार
Delete
ReplyDeleteचुनरी की जगह तो इसको कफ़न तो न दीजिए,
वैसे भी तंग हाल हैं औरत की जिंदगी।।------------ बहुत खूब प्रिय शकू |
शुक्रिया प्रिय नीतू जी
DeleteGreat Poem
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDelete