*एक दिन की बात थी
मैं बैठी थी ऑटो में
मुझे एक *बुज़ुर्ग मिल गये*
बैठे मेरे सामने वाली सीट पर
देख उन्हें लगा
आ गए मेरे दादाजी
लेकर रूप उनका
बार बार मैं
निहारती चेहरा उनका
वो भी बार बार देखते मेरा चेहरा
फिर हर चौराहे पर
कहते मुझसे बहनी-बच्ची
अस्पताल आ जाई
तो बताई देहु
हर दस मिनट पर
मुझे हिलाकर कहते
बहनी-बच्ची अस्पताल आई गईल
न पैसा हाथ में
न कोई बेटा बेटी साथ में
उम्र के इस पड़ाव में
न कोई हैं साथ देने वाला
अचानक मैंने पूछा ही लिया
बाबा अकेले जा रहे हो
छलक आई उनकी बूढ़ी
आँखों से आँसू की धारा
कहने लगे
हैं चार बेटे-बहू मेरे
सब हैं ऊँचे ओहदे पर
नही है टेम किसी के पास
रहिला बिन माई के नातिन के साथ
सुन कर भर आये नयन मेरे
थे मेरे पास कुछ रुपये
देकर मैंने उनको कहा
बाबा मैं कुछ कर तो नहीं सकती
पर इनसे करवा लो इलाज अपना
हाय रे........
ये कैसी विडम्बना हैं
जो माता-पिता अपनी औलादों को
बादशाहों की तरह पालते हैं
जब वो बूढ़े हो जाते हैं
तो उन्हें पालने वाला
नही होता हैं कोई ?*
*CR@शकुंतला
फैज़ाबाद*
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Friday, 3 August 2018
आज के बुजुर्गों की दशा
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