एक मुद्दत से जिंदगी नहीं सोई हैं
मेरी हालत पर शबनम भी बहुत रोई हैं
हर तरफ रेत के ज़र्रों पर है पानी के निशान
इस उल्फ़त में कोई रूह बहुत रोई हैं
इक परछाई बड़ी देर से घेरे है मुझे
ये ग़में इश्क़ ज़रा देख इधर कोई हैं
जिंदगी एक मकान ढूंढ़ रही हैं कब से
थक के वो मेरी पनाहों में अभी सोई हैं
आपने दिल से लगाया जब से शकु को
तब से गुमसुम ख्यालात में खोई हैं
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद