की अपने मन की
हर बात छुपाने की
पर मेरे दिल ने तेरी
हर कोशिश को
नाकाम कर दिया
हम तेरा हर गम
समझ लेते हैं तेरे
चेहरे को देखकर
तेरी आवाज़ की लय
से जान जाते हैं
तेरी हर तकलीफ को
तू मेरे जहन में इस तरह
समाया है कि तेरा
हर दर्द मुझसे होकर
ही गुजरता हैं
तू माने या न माने हम
दो जिस्म एक जान हैं
तुम से ही मैं हूं
और शायद मुझसे
ही तुम्हारा अस्तित्व
जुड़ा हुआ है
हम दोनों ही एक
नाज़ुक सी पर एक
मजबूत डोर से बंधे हुए हैं
जो इस जनम ही नहीं
बल्कि जनमो जन्मों
तक तोड़ने से भी न टूटेगी
शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)
बहुत ही भावपूर्ण और विश्वास भरे समर्पित मन की मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय शकुंतला जी। सचमुच अगाध प्रेम भरे दो मनों एक दुःख और सुख एक ही होते हैं और एक दूसरे के दर्द को महसूस करना ही सच्चा प्यार होता है। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई इस अनुराग भरी रचना के लिए।
ReplyDeleteजी शुक्रिया रेणु दी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 दिसंबर 2020 को 'होंगे नूतन साल में, फिर अच्छे सम्बन्ध' (चर्चा अंक 3929) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी बहुत आभार आदरणीय रविन्द्र जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार 🌷🙏
Deleteतुम से ही मैं हूं
ReplyDeleteऔर शायद मुझसे
ही तुम्हारा अस्तित्व
जुड़ा हुआ है
हम दोनों ही एक
नाज़ुक सी पर एक
मजबूत डोर से बंधे हुए हैं
कोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत सुंदर रचना... - डॉ. शरद सिंह
जी शुक्रिया आदरणीया 🌷
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteसुंदर अहसासों से सराबोर मनोहारी रचना..
ReplyDeleteशुक्रिया जिज्ञासा जी🙏
Deleteसुन्दर प्रस्तुति आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत आभार आदणीय 🙏
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद अनीता जी🙏
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय
Deleteबहुत बहुत सुदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर रचना लिकी है आपने।
ReplyDeleteममन की बात को सार्वजनिक करने के लिए
शुभकामनाएँ आपको।
शुक्रिया आदरणीय
Deleteसुंदर सृजन।
ReplyDeleteजी शुक्रिया आदरणीया 🙏🌷
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