तमन्ना थी कि हमारा भी
प्यार परवान चढ़ेगा
एक छोटा सा घर होगा
नन्हे नन्हे प्यारे से फूलों
से मन आंगन मेहकेगा
पर तुम तो चल दिए
मेरा साथ छोड़ भारत
माता की सेवा करने
उनका आंचल रक्तरंजित
कर उन्हे बचाने चल दिए
तुम तो दुनिया ही छोड़ के
CR@ शकुंतला अयोध्या ( फैज़ाबाद)
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-12-20) को "अपना अपना दृष्टिकोण "'(चर्चा अंक-3902) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
जी शुक्रिया आदरणीया
Deleteमाफ़ी चाहती हूं कि आज मैने अपना ब्लॉग देखा जिस कारण मैं समय से चर्चा अंक 3902 पर उपस्थित नहीं हो पे🙏🙏
ह्रदय स्पर्शी रचना - -
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय
Deleteअत्यंत हृदय विदारक संवाद एक सैनिक की पत्नी का!! हम उनकी पीड़ा से अंजान ना रहें- कवि का परम कर्तव्य पूर्ण किया है आपने। मार्मिक रचना जो जीवन के अनछुये पहलू से अवगत कराती है।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीया दी💖🌷🙏
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