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Sunday 29 November 2020

तमन्ना थी

तमन्ना थी कि हमारा भी 
प्यार परवान चढ़ेगा
एक छोटा सा घर होगा
नन्हे नन्हे प्यारे से फूलों
से मन आंगन मेहकेगा
पर तुम तो चल दिए 
मेरा साथ छोड़ भारत 
माता की सेवा करने
उनका आंचल रक्तरंजित
कर उन्हे बचाने चल दिए
तुम तो दुनिया ही छोड़ के
CR@ शकुंतला अयोध्या ( फैज़ाबाद)

6 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-12-20) को "अपना अपना दृष्टिकोण "'(चर्चा अंक-3902) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. जी शुक्रिया आदरणीया
      माफ़ी चाहती हूं कि आज मैने अपना ब्लॉग देखा जिस कारण मैं समय से चर्चा अंक 3902 पर उपस्थित नहीं हो पे🙏🙏

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  2. Replies
    1. शुक्रिया आदरणीय

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  3. अत्यंत हृदय विदारक संवाद एक सैनिक की पत्नी का!! हम उनकी पीड़ा से अंजान ना रहें- कवि का परम कर्तव्य पूर्ण किया है आपने। मार्मिक रचना जो जीवन के अनछुये पहलू से अवगत कराती है।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीया दी💖🌷🙏

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....