काश अपना भी कोई हमसफ़र होता
और उस सफ़र का एक गुलिस्तां होता
गुलिस्तां में सजाएं होते अपने यादों के फूल
कहीं न कहीं तो बहार आई होती
क़दम से क़दम मिलाकर चलते
चाहे दुश्मन सारा ज़माना होता
रास्तों में साथ होता मंजिल तक पहुंच जाते
उस वक़्त ज़माना भी अपने कदमों में होता
हर नाज़ों सितम तेरे हमने उठाये होते
गर सीने से अपने कभी लगाया होता
यदि रुकना तेरा मुहाल था तो
हमने चलना अपनी तकदीर बनाया होता
ज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर तुमने पुकारा होता
हमने भी अपनी किस्मत को सराहा होता
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद
बहुत बहुत सुंदर रचनाशकुजी
ReplyDeleteकहीं उदास मन की झलक और अपने की ललक लिये।
कोई होता जिसको अपना हम अपना कह लेते।
वाह पोस्ट।
शुभ संध्या ।
शुक्रिया कुसुम दी
Deleteवाह खूब अपनेपन की चाहत लिये भटकते लफ्ज .....👌👌👌👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया इंदिरा दी आपको मेरी कोशिश पसन्द आई
Deleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteप्रेम की चाह में लिखे सुंदर शब्द जो मन के भाव को सहज बयान कर रहे हैं ...
बहुत आभार
Deleteकोमल भावों से भरी चाहतों ज़िक्र करती ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत बहुत शुक्रिया रविन्द्र जी
Deleteज़िन्दगी के किसी भी मोड़ पर तुमने पुकारा होता
ReplyDeleteहमने भी अपनी किस्मत को सराहा होता--- क्या बात है !!!!! बहुत खूब प्रिय शकु === मन को छूती सुंदर रचना सस्नेह ---
रेणु जी बहुत आभार आपको पसंद आई हूं धन्य हुए
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'गुरुवार' १८ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in
ReplyDeleteशुक्रिया ध्रुव जी आपको मेरी रचना पसंद आई
Deleteबहुत खूब .....
ReplyDeleteआकर्षित करते शब्द .....!!
शुक्रिया संजय जी
Deleteवाह ! बेहतरीन प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteशुक्रिया राजेश जी
Deleteसमर्पण का संगीत!!!
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteचाहत और प्रेम की अभिव्यक्ति....
वाह!!!!
शुक्रिया सुधा दी
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteशुक्रिया रितु जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर अनुरोध खूबसूरत भावों से सजी रचना।
ReplyDeleteबहुत आभार पम्मी जी
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