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Friday 8 December 2017

नवनीत सी रात हो

दर्द रोने से दूर होता नही,शब्द इनको बना लो तो कुछ बात हो
पीर के मेघा पलकों में छाए मगर, अश्रु मोती के किंचित धरा पर गिरे

नेह के दीप को बुझने न दो,पथ में चाहें जितना अंधेरा घिरे
ऐसे मुस्काओ कि उपवन में कलिया खिले,ऐसे झुमों की मरुस्थल में बरसात हो

हर्ष हैं कष्ट से छाँव हैं धूप से,जिंदगी वस्तुतः इक संघर्ष है
यह कसौटी परम सत्य का साक्ष्य हैं, दाह स्पर्श में स्वर्ण उत्कर्ष हैं

जिंदगी एक शतरंजी बिसात हैं, ऐसे खेलो इसे मौत की मात हो
सबको आलोक दो अपने व्यक्तित्व का, सूर्य जैसे भले ताप से तुम जलो

लोक कल्याण बड़ा धर्म हैं, मान कर के यही लक्ष्य तुम चलो
ऐसे आवाज़ दो हर दिवस छन्द हो,ऐसे गाओ की नवनीत सी रात हो
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद

18 comments:

  1. Bahut sunder
    Man ko bha gai aap ki rachna

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  2. शुक्रिया नीतू जी आपको मेरी कविता पसन्द आई

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  3. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया पम्मी जी.... आपको मेरी रचना पसन्द आई हम धन्य हुए ।मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभार

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  4. दर्द रोने से दूर नहीं होता इनको शब्द बना लो तो कुछ बात है.. सारगर्भित पंक्ति ... आशाओं का नवसंचार करती प्रभावशाली रचना.. बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।

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    1. बहुत बहुत आभार अनिता जी आपको मेरी ये छोटी सी कोशिश पसन्द आई आपका तहेदिल से शुक्रिया

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    1. धन्यवाद सुशील जी

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  6. सच्चाई बयां करती आप की रचना
    बहुत सुंदर

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय नीतू जी

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    1. शुक्रिया मीना जी

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  9. लाजवाब प्रस्तुति ।

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    1. धन्यवाद राजेश जी

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  10. प्रिय शकु-- जीवन में नव आशा का संचार करती रचना अपने आप में मधुर सन्देश
    है |
    दर्द रोने से दूर होता नही,शब्द इनको बना लो तो कुछ बात हो
    पीर के मेघा पलकों में छाए मगर, अश्रु मोती के किंचित धरा पर गिरे
    बहुत सुंदर भाव -- बधाई आपको --

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    1. रेणु दी आपके इस प्रोत्साहन के लिए बहुत आभार हम धन्य हुए आपको मेरी रचना पसन्द आई

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  11. दर्द रोने से दूर नहीं होता इनको शब्द बना लो तो कुछ बात है
    ......सच्चाई बयां करती रचना !!

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    1. शुक्रिया संजय जी🌷

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....