गुनगुना कर मेरे आरजू को मानी दे दो
बन के किरदार मुझे कहानी दे दो
मेरी आँखों में सब्र का टुकड़ा भी नही
तू तो सावन है मेरी आँखों को पानी दे दो
हैं ज़मी बर्फ़ मेरे हाथों के दरियाओं से
हो सके तो उन्हें साँसों की रवानी दे दो
शर्तिया मैं तेरे ख्वाबों से चली जाऊँगी
मेरे होंठों को कोई अपनी निशानी दे दो
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद
वाह... बहुत खूब
ReplyDeleteShukriya sudha ji
Deleteवाह! बहुत ख़ूब! नज़ाकत भरे जज़्बात
ReplyDeleteका ख़ूबसूरत मुज़ाहिरा करती बेहतरीन ग़ज़ल। बधाई एवं शुभकामनाएं शकुंतला जी।
शुक्रिया रविन्द्र जी
Deleteसुंदर!!!
ReplyDeleteधन्यवाद विश्व मोहन जी
DeleteBahut sunder rachna
ReplyDeleteNape tule shabd bahut prabhavi tarike see piroye Hai aap ne
Shukriya my dear Nitu ji
Deleteबहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी ...
ReplyDeleteबहुत आभार संजय जी
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