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Thursday 7 December 2017

अपनी निशानी दे दो

गुनगुना कर मेरे आरजू को मानी दे दो
बन के किरदार मुझे कहानी दे दो

मेरी आँखों में सब्र का टुकड़ा भी नही
तू तो सावन है मेरी आँखों को पानी दे दो

हैं ज़मी बर्फ़ मेरे हाथों के दरियाओं से
हो सके तो उन्हें साँसों की रवानी दे दो

शर्तिया मैं तेरे ख्वाबों से चली जाऊँगी
मेरे होंठों को कोई अपनी निशानी दे दो
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद

10 comments:

  1. वाह! बहुत ख़ूब! नज़ाकत भरे जज़्बात
    का ख़ूबसूरत मुज़ाहिरा करती बेहतरीन ग़ज़ल। बधाई एवं शुभकामनाएं शकुंतला जी।

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    1. शुक्रिया रविन्द्र जी

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  2. Replies
    1. धन्यवाद विश्व मोहन जी

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  3. Bahut sunder rachna
    Nape tule shabd bahut prabhavi tarike see piroye Hai aap ne

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  4. बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी ...

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  5. बहुत आभार संजय जी

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....