उस चांद से पूछो ?
तुम हर दिन घटते बढ़ते
क्यों रहते हो ?
कभी तो लगता हैं
हर दिन बढ़ रहा है प्यार तुम्हारा
फिर भ्रम टूटने लगता है
तुम्हारे हर दिन घटने से
कम होने लगता हैं प्यार तुम्हारा
क्यों प्यार तुम्हारा ऐसे
करवटे बदलता रहता है?
कभी तो पूरा दिखते हो
बरसाते हो असीम प्रेम मुझ पर
कभी तो एक दम हो जाते हो गायब
करके अंधकार जीवन मेरा.…..
शकुंतला अयोध्या (फैज़ाबाद)*
दिल को छूती सुन्दर रचना..
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय जिज्ञासा जी
Deleteवाह...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
धन्यवाद आदरणीय वर्षा जी
Deleteप्रणय दिवस के अवसर पर सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आदरणीय मयंक जी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 15 फ़रवरी 2021 को चर्चामंच <a href="https://charchamanch.blogspot.com/ बसंत का स्वागत है (चर्चा अंक-3978) पर भी होगी।
जी शुक्रिया आदरणीय रवींद्र जी
Deleteमेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभार
चांद के बिम्ब से प्रेम की समीक्षामय सुंदर रचना शकुंतला जी 🌹🙏🌹
ReplyDeleteजी शुक्रिया आदरणीया
Deleteप्रेम के उतार चढ़ाव को चाँद का बिम्ब देना अच्छा लगा । बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया संगीता जी
Deleteसुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय दीदी
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय अनीता जी
Deleteअच्छी कविता |हार्दिक शुभकमनाएं
ReplyDelete🙏 शुक्रिया आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर अंदाज़ में लिखी बेहतरीन रचना
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी शुक्रिया आदरणीय मनोज जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी शुक्रिया आदरणीय
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