इश्क की आग से दामन को बचाये रहिये
ये तो वो खुशबू हैं इसे तन मन में बसाये रखिये
उठाते हैं प्यार में जो नफ़रत की दीवारें
आप उस दीवार को हमेशा गिराते रहिये
यूँ तो हर शख्स बदल लेता है चेहरा अपना
पर अपने चेहरे की मासूमियत यूँही बनाये रहिये
कौन होता हैं बुरे वक़्त में हाला-शरीक
पर भरोसा किसी एक इंसान पे बनाये रखिये
ग़म की आग में जलना ही मुहब्बत हैं यहां
फिर भी एक शय में इक वफ़ा की शमा जलाये रखिये
न तो शिकवा न कोई गिला हैं तुमसे
इल्तिज़ा इतनी हैं बस अपने दिल में बसाये रहिये
©®@ शकुंतला
फैज़ाबाद
वाह महकते भावों वाली कोमल रचना इश्क की तरफदारी।
ReplyDeleteबहुत आभार दी
Deleteयूँ तो हर शख्स बदल लेता है चेहरा अपना
ReplyDeleteपर अपने चेहरे की मासूमियत यूँही बनाये रहिये==
बहुत खूब --प्रिय शकू -- बहुत अच्छी रचना -- मेरी शुभकामना --
शुक्रिया रेणु जी आपकी मेरी रचना पसंद आई
Deleteकौन होता हैं बुरे वक़्त में हाला-शरीक
ReplyDeleteपर भरोसा किसी एक इंसान पे बनाये रखिये...
यही तो जिन्दगी है👌👌
बहुत आभार पुरुषोत्तम जी
Deleteवाहह्ह्ह्
ReplyDeleteबहुत उम्दा
शुक्रिया लोकेश जी
Deleteउठाते हैं प्यार में जो नफ़रत की दीवारें
ReplyDeleteआप उस दीवार को हमेशा गिराते रहिये
अति सुन्दर.... लाजवाब....
वाह!!!
बहुत बहुत आभार दी
Deleteवाह !!! बहुत उम्दा
ReplyDeleteशुक्रिया प्रिय नीतू जी
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब
बधाई
शुक्रिया
Deleteबहुत आभार राकेश जी
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया रितु जी
Deleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteशुक्रिया मीना जी
Deleteबहुत सुंदर कोमल भावों से सजी रचना..
ReplyDeleteबहुत आभार पम्मी जी
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ReplyDeleteउम्मीद की एक किरण ही काफी होती है हौसले के लिए
बहुत सुन्दर रचना
जी बहुत आभार कविता जी
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी शुक्रिया
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