दिल की बात
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Sunday, 26 May 2024
अनुरोध
मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....आज मैं सभी नारी शक्ति से एक अनुरोध करना चाहती हूं...... जिस तरह से धरती पेड़ विहीन 🪵होती जा रहीं हैं आज हम सड़क पर चलते हैं तो पेड़ की छांव को तरस रहे हैं कल को हम पानी के लिए भी ऐसे ही तरसेंगे हमारी आने वाली पीढ़ी को हम क्या सौगात देंगे ये बंजर धरती, मरुस्थल,ये कंक्रीट के जंगल, हमारे बच्चे कितनी देर तक जी पायेंगे आने वाले समय में जब सूर्य की किरणे 60° तापमान से धरती को तपायेंगी तो सोचिए क्या होगा हमारे नाजों से पले बच्चों का जिनको हम इतनी नजुकता से पालते हैं हर जगह AC AC की सुविधा देते हैं.. आखिर कब तक इस झूठे वातावरण में उन्हें हम पालेंगे... जब तक वो इस सच्चाई से रूबरू होंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी .... इसीलिए आज से क्या अभी से हम कम से कम पांच पेड़ जरूर लगाए...स्त्रियां अगर चाह ले तो हम अपनी बंजर होती धरती को फिर से हरा भरा कर सकती हैं अपने लिए न सही अपने जान से प्यारे बच्चों की जान की हिफाज़त के लिए ही सही हम प्रण करे कि हमें धरती को फिर से जीवनदायनी बनाना है उसे फिर से हरा भरा करना है 🙏🙏🌳🌲🌳🌳🌳🌲🌲🏞️🌨️🌧️
Sunday, 2 July 2023
कहाँ खो गई हो तुम
कहाँ खो गई हो तुम....
आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं.......
वो मासूम सी बच्ची
खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से ,
चेहरे की रौनक, आँखों की चमक
सब माँ के साथ चली गई
Monday, 6 February 2023
अब तो सब सपना हो गया
गांव जाते ही बचपन की सारी यादें
आँखों के सामने आ जाती हैं
दादा दादी का प्यार,दुलार
दादा जी का मेरा पैर छू कर कहना
हमार राजा आ गईल
आपन बहनी का हम गोड़ रख लेई
दादी का मेरे होंठों को चूमना
एक दिन पहले से ही मेरी पसंद का
रसियाव ,दलभरी पूड़ी ,चोखा भात बनाना
जितने चाचा उतने तरह का खाना
पूरे गांव में घूमना मस्ती करना
सबके साथ मिलकर चूहले पर खाना बनाना
बुआ लोगो का ओखली में चूड़ा कूटना
दादी के साथ ढेकी पर धान कूटना
चक्की पर दाल दरना,गेहूं पीसना
दादा जी के साथ खेतों में जाना
उनके लिए नहारी ले जाना
उनके साथ खूब सारी बातें करना
दादा जी का बात बात पर कहना
बहनी जो हो गया सो हो गया
मम्मी का सीधे पल्ले की साड़ी पहनना
सभी चाचियां मम्मी के आगे पीछे
दीदी दीदी कह कर लगे रहना
कोई बुकवा लगा रहा है तो कोई
सिर में तेल मीज रहा है हर कोई
बस मम्मी की सेवा में लगा रहता
पापा का तो अलग ही रौब रहता था
दादाजी पता नहीं कैसे जान जाते थे
कि पापा आने वाले हैं
एक दिन पहले से ही दूध दही बचाने लगते
कहते हमार बड़का बाऊ आई तब वही खाई
गज़ब का प्यार था उनका पापा के लिए
हम सब भाई बहनों का प्यार
आम के पेड़ पर छूआ छुआन खेलना,
पाकड के पेड़ पर झूला झूलना,
पता नहीं कैसे गर्मी की छुट्टियां बीत जाती थी
वापस आते समय सभी का रोना
भेटना गाँव के बाहर तक छोड़ना
..…अब तो सब सपना हो गया हैं
शकुंतला
सर्वाधिकार सुरक्षित
अयोध्या (फैजाबाद)
Sunday, 28 August 2022
उसके कंगन
बिन कहे ही सब कुछ बोल जाते हैं उसके कंगन
कानों में मीठी सी धुन सुना जाते हैं उसके कंगन
दिल में अरमान आंखों को ख़्वाब दे जाते हैं उसके कंगन
तन- मन मे अगन लगा जाते हैं उसके कंगन
प्रेम आलिंगन में घेर लें जाते हैं उसके कंगन
कभी दिल कभी मन भर जाते हैं उसके कंगन
कभी मेरे होने का अहसास करा जाते है उसके कंगन
तो कभी अपनी जिम्मेदारी सौंप जाते हैं उसके
कंगन
कभी खुलकर प्यार करना सीखा जाते हैं उसके कंगन
तो कभी टूटकर लहुलुहान कर जाते हैं उसके कंगन
कभी माँ की गोद तो बहन की याद दिला जाते हैं उसके कंगन
न जाने क्या क्या दिखा जाते हैं उसके कंगन
शकुंतला राज
Saturday, 21 May 2022
पहला इश्क
तुम से पहले भी
इश्क हुआ था
हमें अपनी मां से
जिसमें सिर्फ़ और सिर्फ़
प्यार मिला था हमें
वो पहला प्यार हम
कभी न भूल पाएंगे
चाहे जितने भी
कर लो जतन पर
ऐसा इश्क दुबारा
न कर पाएंगे
हम किसी से
शकुंतला" वैभवी "
अयोध्या
Wednesday, 11 May 2022
तुमसे कोई उम्मीद नहीं
तुमसे कोई उम्मीद नहीं
फिर भी न जानें क्यों सारी उम्मीदें तुमसे ही है
तुमसे कोई ख्वाहिश नही
फिर भी न जाने क्यों सारी ख्वाहिशें तुमसे ही है
तुमसे कोई नाराजगी नहीं
फिर भी न जाने क्यों सारे गिले शिकवे तुमसे ही है
तुमसे प्यार की उम्मीद नहीं
फिर भी न जाने क्यों मोहब्बत सिर्फ़ तुमसे ही है
शकुंतला
Friday, 4 February 2022
मां वैभवी
विद्या की चाहत है तो विमूढ़ता का नाश कर,
विन्रमता की सीढ़ी चढ़ विद्या को प्राप्त कर।
पात्रता की आस है तो मां शारदे का ध्यान कर,
उसकी अनुकंपा से तू यशस्वी बन जायेगा।
शालीनता की कुंजी से तू पात्रता के द्वार खोल,
पात्रता के बल ही तू जग-प्रसिद्धि पाएगा।
वैभव की आस है तो मां वैभवी को याद कर,
उसी की प्रेरणा से तू धन अर्जित कर पाएगा।
विद्या की देवी मां सरस्वती का तू ध्यान कर,
जिसकी सुरताल सुन तू सद्मानव बन जायेगा।
शकुन्तला
अयोध्या (फैज़ाबाद)
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अनुरोध
मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....
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नन्हे मुन्ने कोमल, चंचल, कच्ची मिट्टी से नौनिहालों को प्रेम,नैतिकता,संस्कार, ज्ञान की भट्टी में तपा कर जीवन रूपी नदियाँ में करती हूँ प्रवाह ...
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पथ वरण करना सरल है, पथिक बनना ही कठिन है। दुख भरी एक कहानी सुनकर, अश्रु बहाना तो सरल है। बांध कर पलकों में सावन, मुस्कुराना ही कठिन है...
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बिन कहे ही सब कुछ बोल जाते हैं उसके कंगन कानों में मीठी सी धुन सुना जाते हैं उसके कंगन दिल में अरमान आंखों को ख़्वाब दे जाते हैं उसके कंगन तन...