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Thursday 16 November 2017

आ न सकें

जब खुशी मिली तो मुस्कुरा न सकें
ग़म मिलें तो आँसुू बहा न सकें

कोशिश तो बहुत की हाले दिल बताने की
बस दो लफ्ज़ ही जुबां पर हम ला न सके

सोचा चुप रह कर भी हम सबकुुुछ उन्हें समझा देगें
पर खामोशियों की जुबां वो समझ न सकें

नज़रें मिलाई तो वो रुठ गए
फिर नज़रें झुका कर उन्हें मना न सके

रुसवा वो हुए या हम पता नहीं
हम उनके वो हमारे सामने फिर आ न सके
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद

10 comments:

  1. Bahot khoob....
    Kamal likhti hai aap...
    khamoshiyon ki juban bahot kuch kah gai...
    Shandar...

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    1. शुक्रिया नीतू जी

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  2. खुशी मिली
    जब तो
    मुस्कुरा न सकें
    बहुत सुन्दर
    गूगल फॉलोव्हर गैजेट लगाईए
    सादर

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    1. यशोदा दी बहुत बहुत शुक्रिया आपको मेरी कोशिश पसंद आई

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  3. Replies
    1. आपका तहे दिल से शुक्रिया पम्मी जी

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  4. नज़रें मिलाई तो वो रुठ गए
    फिर नज़रें झुका कर उन्हें मना न सके...

    रुठे रब को मनाना आसान है रूठै यार को मनाना मुश्किल....

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    1. शुक्रिया पुरुषोत्तम जी आपकी प्रतिक्रिया का तहेदिल से स्वागत करती हूँ

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  5. दिल को छूते कोमल भाव . ज़िंदगी में विरोधाभासों का अपना ख़ास महत्व है . कोई हल नहीं ,कोई संदेश नहीं बल्कि स्थिति को जस का तस सामने रखना वह भी भावात्मकता के साथ रचनाकर्म की विशेषता है . सुंदर रचना. बधाई एवं शुभकमनायें.

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    1. रवीन्द्र जी आभार आपका मेरी छोटीसी कोशिश को आप ने बडी गहराई से समझा🌷

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अनुरोध

मेरा मन बहुत विचलित हो उठता है जब भी मैं कटे हुए पेड़ो को देखती हूं लगता है जैसे मेरा अंग किसी ने काट दिया हो बहुत ही असहनीय पीढ़ा होती हैं....