जब खुशी मिली तो मुस्कुरा न सकें
ग़म मिलें तो आँसुू बहा न सकें
कोशिश तो बहुत की हाले दिल बताने की
बस दो लफ्ज़ ही जुबां पर हम ला न सके
सोचा चुप रह कर भी हम सबकुुुछ उन्हें समझा देगें
पर खामोशियों की जुबां वो समझ न सकें
नज़रें मिलाई तो वो रुठ गए
फिर नज़रें झुका कर उन्हें मना न सके
रुसवा वो हुए या हम पता नहीं
हम उनके वो हमारे सामने फिर आ न सके
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद
ग़म मिलें तो आँसुू बहा न सकें
कोशिश तो बहुत की हाले दिल बताने की
बस दो लफ्ज़ ही जुबां पर हम ला न सके
सोचा चुप रह कर भी हम सबकुुुछ उन्हें समझा देगें
पर खामोशियों की जुबां वो समझ न सकें
नज़रें मिलाई तो वो रुठ गए
फिर नज़रें झुका कर उन्हें मना न सके
रुसवा वो हुए या हम पता नहीं
हम उनके वो हमारे सामने फिर आ न सके
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद
Bahot khoob....
ReplyDeleteKamal likhti hai aap...
khamoshiyon ki juban bahot kuch kah gai...
Shandar...
शुक्रिया नीतू जी
Deleteखुशी मिली
ReplyDeleteजब तो
मुस्कुरा न सकें
बहुत सुन्दर
गूगल फॉलोव्हर गैजेट लगाईए
सादर
यशोदा दी बहुत बहुत शुक्रिया आपको मेरी कोशिश पसंद आई
Deleteबहुत बढिया..
ReplyDeleteआपका तहे दिल से शुक्रिया पम्मी जी
Deleteनज़रें मिलाई तो वो रुठ गए
ReplyDeleteफिर नज़रें झुका कर उन्हें मना न सके...
रुठे रब को मनाना आसान है रूठै यार को मनाना मुश्किल....
शुक्रिया पुरुषोत्तम जी आपकी प्रतिक्रिया का तहेदिल से स्वागत करती हूँ
Deleteदिल को छूते कोमल भाव . ज़िंदगी में विरोधाभासों का अपना ख़ास महत्व है . कोई हल नहीं ,कोई संदेश नहीं बल्कि स्थिति को जस का तस सामने रखना वह भी भावात्मकता के साथ रचनाकर्म की विशेषता है . सुंदर रचना. बधाई एवं शुभकमनायें.
ReplyDeleteरवीन्द्र जी आभार आपका मेरी छोटीसी कोशिश को आप ने बडी गहराई से समझा🌷
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