हर आहट पर चौके हम
कि तुम हो तुम हो
अपने दिल की बेचैनियों को दबाये हुए
हमने कर दी भोर से साँझ तेरे इंतजार में,
की तुम हो-तुम हो.....,
सूरज की हर किरणों के साथ हमने
अपने दिल की तपिश को महसूस किया हैं तेरे इंतजार में,
की तुम हो-तुम हो.....,
सर्दियों की धूप में छत की मुँडेर से देखते रहे हम
सूरज ढल गया तेरे इंतजार में
की तुम हो-तुम हो......,
हर सुनसान वीरान राहों पर हमने,
हर छाया में तुझे महसूस किया तेरे इंतजार में,
की तुम हो-तुम हो.......,
जिंदगी बिताने का यू ही दम साधा
हैं शकुंतला ने प्यार तेरे इंतजार में
कि तुम हो-तुम हो.......
®©@शकुंतला
फैज़ाबाद
एक बहुत प्यारी अभिव्यक्ति कम शब्दों में
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
बहुत आभार संजय जी....मैं इतनी तारीफ़ के काबिल नहीं
ReplyDeleteप्रिय शकु -------- इन्तजार का मर्मान्तक समय इसी तरह की प्रत्याशा में गुजरता होगा !!!!!!!! कितने सरल शब्दों में आपने मन की व्यथा बयान कर दी | कितनी सरलता से लिख दी मन की बात -
ReplyDeleteहर सुनसान वीरान राहों पर हमने,
हर छाया में तुझे महसूस किया तेरे इंतजार में,
की तुम हो-तुम हो.......,सच में ये भोली सी बातें किसी की भी आँखें नम कर दे | पागल मन के इन भ्रामक सपनों का क्या कहिये | सस्नेह ----------
बहुत बहुत आभार रेणु दी मेरे मन के भाव को आप ने बड़े ही मन से पढ़ा.... आपके प्रेम भरे शब्दों ने आज मेरी आँखें नम कर दी🍀
Deleteएक बहुत प्यारी अभिव्यक्ति
ReplyDelete🌷शुक्रिया
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