एक बार
बस
एक बार
रोक लेना था मुझे....
तुमने एक बार
आवाज़ तो दी होती
मैं न रुकती
तो
इसमें मेरी खता होती
मेरे कदम
रुक रुक के
पड़ रहे थे
बस
एक आवाज़ दे कर
रोक लेना था मुझे....
लगा कर
सीने से मुझे
बस इतना कह देते
मैं हूं न......
मैं सबकुछ छोड़कर
तुम्हारी हर
खता भूलकर
एक नई शुरुआत करती मैं
पर
जब मैंने मुड़कर देखा
तुम तो जा चुके थे
मैं इंतजार करती रह गई
रोक लेना था मुझे...
यह सुनने के लिए
मैं हूं न....
शकुंतला
अयोध्या फैज़ाबाद
जी बहुत आभार आदरणीया दी मैं ज़रूर उपस्थित रहुंगी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी शुक्रिया आदरणीय
Deleteज़िन्दगी में कभी कभी हम दूसरों से अपेक्षा करते रहे जाते हैं ।
ReplyDeleteकाश एक कदम हम ही स्वयं आगे बढ़ जाएँ ।
भावों का अच्छा सम्प्रेषण ।
जी सही कहा आपने आदरणीया
Deleteछोटी-छोटी बातें कब बड़ी बनकर आपसी प्रेम में कडुवाहट भर देते हैं, इसका पता बहुत कुछ खोने के बाद भी नहीं चल पाता है
ReplyDeleteप्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए बहुत आभार आदरणीया
Deleteसुंदर सृजन ।
ReplyDeleteशुक्रिया शुभा जी
Deleteवाह बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteजी शुक्रिया आदरणीय मनोज जी
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