बहुत दिन बाद आज जब मैं
अपने ननिहाल गई तो
आज भी खूंटी पर टांगा
वो लालटेन देखा
जिसे नाना जी बड़े ही
प्यार से लाए थे नानी के लिए
कहते थे तुम्हारी आंखे
खराब हो जायेंगी चिराग़ से
लो ये देखों मैं तुम्हारे लिए
लालटेन लाया हूं
अब नहीं दुखेंगी तुम्हारी आंखे
आज नानी उसी लालटेन को
बड़े ही प्यार से साफ कर
रोशन करती हैं अपना घर
आंगन और मन भी
नानाजी की यादों के साथ
शकुंतला अयोध्या ( फैज़ाबाद)
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी शुक्रिया आदरणीया मैं ज़रूर उपस्थित रहुंगी
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया आदरणीय
Deleteसहजता से मन को छूती रचना..।
ReplyDeleteशुक्रिया जिज्ञासा जी
Deleteवर्षों पुराणी यादें ताज़ी हो गई
ReplyDeleteबत्ती का धुआँ सारे घर को काला कर देता था लेकिन लालटेन की रौशनी का क्या कहने,
नाना की यादें सहेजे हैं नानी ने लालटेन में
बहुत अच्छी प्रस्तुति
बहुत आभार आदरणीया
Deleteवाह ! बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया गगन जी
Deleteप्रिय शकुंतला जी, आपका ये भावपूर्ण काव्य चित्र भावुक करने वाला है। शब्दों में नाना- नानी की
ReplyDeleteअनकही कहानी सहजता से साकार हो जाती है।
यादों की लालटेन और प्रेम की रोशनी मन को छू जाती है। इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई🙏 ❤🌹❤❤
बहुत बहुत धन्यवाद दी आपकी प्रतिक्रिया से मन लिखने को प्रेरित होता हैं 🙏🌷💖
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी 🌼
Deleteमन को भावुक कर देने वाली रचना |
ReplyDeleteशुक्रिया आलोक जी
Delete